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ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रही दुनिया मांगे न्यूक्लियर पावर

2035 तक वातावरण में कार्बन उत्सर्जन का प्रतिशत 4 से 6 फीसदी तक बढ़ जाएगा। यूनियन ऑफ कंन्र्सन्ड साइंटिस्ट की रिपोर्ट। सौर्य और वायु ऊर्जा से बिजली संकट को पूरा करना संभव नहीं है।

जयपुरJan 11, 2019 / 07:20 pm

manish singh

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ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रही दुनिया मांगे न्यूक्लियर पावर

दुनियाभर के देशों के लिए ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी चुनौती है और पिछले 21 वर्षों में हालात तेजी से खराब हुए हैं, लेकिन अब न्यूक्लियर पावर पर सभी देशों की नजर है क्योंकि बिजली जैसी सामान्य जरूरत को इसी से पूरा किया जा सकता है। क्लाइमेंट चेंज पर संयुक्त राष्ट्र की इंटरगवर्मेंट पैनल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि परमाणु शक्ति ही पर्यावरण को बचाने में मदद करेगी। नेचर कंजर्वेसी जो परमाणु शक्ति पर चुपचाप बैठी थी। अब उसने भी कहा है कि इसका विस्तार करना जरूरी है तभी दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाली एक तिहाई बिजली का उत्पादन वर्ष 2050 तक संभव है।

अब वैज्ञानिक दशकों पहले से संचालित न्यूक्लियर प्लांट को बचाने में लगे हैं जिससे वे अपने तय समय पर बंद न हो सकें। अमरीका में 60 फीसदी बिजली उत्पादन बिना किसी हानिकारक तत्त्व के उत्सर्जन के न्यूक्लिर पावर से होती है। जब ये प्लांट बंद होंगे तब जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन संभव है। अमरीका में करीब 22 फीसदी संयंत्र यूक्लियर पावर वाले हैं जो अगले पांच से दस साल के बीच बंद होने की कगार पर रहेंगे। न्यूक्लियर पावर महंगा है जिसका असर बाजार पर भी पड़ता है। इसका एक बड़ा कारण सौर्य और वायु ऊर्जा की कीमतों में आई गिरावट है। सौर्य और वायु ऊर्जा से बिजली संकट को पूरा करना संभव नहीं है। कार्बन टैक्स की व्यवस्था परमाणु संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली को प्रतिस्पर्धा में ला सकती है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रोन ने ऐसा ही किया है। न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी में ऐसा ही हुआ है और अब अमरीका सोच रहा है। ऐसा ही दूसरे देशों को सोचना होगा।

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