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विदेश

क्यों एक छोटा अफ्रीकी देश रोहिंग्या का मामला विश्व अदालत में ले गया

-गांबिया (gambia) ने न्यायालय में कहा कि वह म्यांमार (myanmar) में रोहिंग्या (rohingya refugees) के खिलाफ अत्याचार और नरसंहार रोकने के लिए आदेश जारी करे

Nov 24, 2019 / 07:12 pm

pushpesh

रोहिंग्या मुसलमान

जयपुर.
अफ्रीका महाद्वीप के सबसे छोटे देश गांबिया ने हाल ही अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में एक अभूतपूर्व कदम उठाया है। संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत में गांबिया ने म्यांमार पर रोंहिग्या मुसलमानों के नरसंहार का मुकदमा दर्ज करवाया है। ये इसलिए भी अनूठा मामला है, क्योंकि दोनों देशों के बीच करीब 11 हजार 500 किलोमीटर का फासला है और दक्षिण-पूर्व एशिया के संकट से उसका कोई सीधा संबंध भी नहीं है। लेकिन एक छोटा देश दूर देश के विवाद में क्यों कूदा? इसकी कहानी व्यक्तिगत है।
गांबिया के अटॉनी जनरल और न्याय मंत्री अबू बकर ताम्बादो ने पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट पढ़ी थी, जिसमें बताया गया था कि बौद्ध बहुल म्यांमार में 2017 में सेना ने हजारों रोहिंग्या मुसलमानों को मार दिया और सात लाख से अधिक पड़ोसी बांग्लादेश में चले गए। जांचकर्ताओं ने हिंसा को ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ बताया और अमरीका ने इसे जातीय उन्माद कहा। म्यांमार ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि वह सिर्फ आतंवादियों को निशाने पर ले रहा है।
म्यांमार पर बढ़ेगा कानूनी दबाव
यूएन ट्रिब्यूनल में वर्षों तक वकील रहे ताम्बादो का उस वक्त पूरा ध्यान 1994 के रवांडा दंगों पर था। मई 2018 में उन्होंने बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थी शिविर का दौरा किया। तब शरणार्थियों पर हुए जुल्म सुनकर उन्हें रवांडा में सरकार के अत्याचारों की याद आ गई। जब 100 दिन चले नरसंहार में आठ लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और करीब ढाई लाख महिलाओं को यौन उत्पीडऩ से सहना पड़ा। अब जबकि गांबिया ने हेग के अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में मुकदमा दायर किया है तो म्यांमार पर कानूनी दबाव बढऩे की उम्मीद की जा सकती है। अफ्रीकी देश ने न्यायालय में कहा कि वह म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ अत्याचार और नरसंहार रोकने के लिए आदेश जारी करे। गांबिया रोहिंग्या की दुर्दशा को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में अभियोजन के एक वर्ष बाद सुर्खियों में लाया है, जो सामान्यत: युद्ध अपराधों के मामलों को देखता है।
27 इस्लामिक देशों का मिल सकता है साथ
न्यायालय ने जातीय संघर्ष से निपटने के लिए जांच शुरू कर दी है, लेकिन ये प्रयास कारगर होते नजर नहीं आते, क्योंकि सदस्य देश नहीं होने के कारण म्यांमार उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। फिर इस तरह के कानूनी मुकदमें वर्षों तक चलते हैं और लाखों डॉलर खर्च होते हैं, जो लगभग 100 करोड़ की जीडीपी वाले देश के लिए काफी मुश्किल है। हालांकि करीब 23 लाख की आबादी वाले मुस्लिम राष्ट्र को गांबिया को 57 देशों के इस्लामिक सहयोग संगठन का भी समर्थन हासिल है, जो खुद को मुस्लिम दुनिया की आवाज कहता है।

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