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ARMENIA-AZERBAIJAN DISPUTE : क्या है अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच विवाद

-44 सौ वर्ग किमी क्षेत्र में है नागोर्नो करबाख। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद खुद को स्वतंत्र घोषित किया, मान्यता नहीं मिली-30 हजार लोगों की जान गई थी 1980 से 1992 तक युद्ध में, 10 लाख विस्थापित हुए। फिर 2016 के संघर्ष में 200 लोग मारे गए।

Oct 05, 2020 / 11:22 pm

pushpesh

अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच विवाद,

जयपुर. सोवियत संघ से अलग हुए मुस्लिम बहुल देश अजरबैजान और ईसाई बहुल आर्मेनिया में नागोर्नो-करबाख को लेकर युद्ध छिड़ा है। नागोर्नो-करबाख को अजरबैजान के हिस्से के रूप में अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल है, लेकिन यहां आर्मेनियाई आबादी अधिक है। वर्ष 1994 में हुए युद्ध विराम के बाद दोनों देशों के बीच ये सबसे बड़ा संघर्ष है। तुर्की और पाकिस्तान को छोड़ ज्यादातर देश दोनों के बीच शांति वार्ता के लिए दबाव डाल रहे हैं। भारत ने भी क्षेत्रीय स्थिरता के लिए संतुलित रुख अपनाया है। दरअसल, भारत के आर्मेनिया और अजरबैजान दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। उत्तर-दक्षिण अंतरराष्ट्रीय ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर मुंबई से चाबहार और अजरबैजान होते हुए मास्को तक जाता है। ये कॉरिडोर भविष्य में भारत के लिए कनेक्टिविटी के नए द्वार खोलेगा। 2018 तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अजरबैजान की राजधानी बाकू स्थित अग्नि मंदिर का दौरा किया था, जो कभी हिंदू और पारसी समुदाय का पूजा स्थल हुआ करता था। इसके बाद दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध और प्रगाढ़ हुए।
आर्मेनिया ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ दिया
जहां तक आर्मेनिया की बात है तो वह कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर भारत का साथ देता रहा है। पिछले वर्ष न्यूयॉर्क में विओन समिट (डब्ल्यूआइओएन) के दौरान जब कश्मीर मुद्दे पर तुर्की ने हंगामा किया तो आर्मेनियाई प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान ने कहा, हम कश्मीर मुद्दे पर दृढ़ता से भारत का समर्थन करते हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पशिनयान से मिले और दोनों देशों के बीच व्यापारिक सहयोग बढ़ाने पर विमर्श हुआ। मुलाकात के दौरान पशिनयान ने आर्मेनिया में भारतीय फिल्म, संगीत और योग की लोकप्रियता का भी जिक्र किया। इस वर्ष की शुरुआत में जब आर्मेनियाई प्रधानमंत्री कोरोना पॉजिटिव हुए तो पीएम मोदी ने ट्वीट कर उनके शीघ्र स्वस्थ होने कामना की और कहा, कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारत, आर्मेनियाई के साथ खड़ा है।
तुर्की की भाषा बोल रहा है पाकिस्तान
उधर पाकिस्तान एकमात्र देश है, जो आर्मेनिया को मान्यता नहीं देता। बात साफ है, पाकिस्तान के तुर्की व अजरबैजान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जो आर्मेनिया की खिलाफत करते हैं। उम्मीद के मुताबिक मौजूदा संघर्ष में तुर्की की तरह अजरबैजान का समर्थन करने वाला पाकिस्तान पहला दक्षिण एशियाई देश है। पाकिस्तान ने अजरबैजान के तर्तेर, अघदम व जेबरायल में आर्मेनियाई गोलीबारी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। जबकि अजरबैजान की कार्रवाई का बचाव किया है।
क्या है विवाद
अजरबैजान-आर्मेनिया के बीच विवाद की जड़ नागोर्नो-करबाख का पहाड़ी इलाका है। जिसे अजरबैजान अपना बताता है। हालांकि 1994 से इस पर आर्मेनिया का कब्जा है। 1920 के दशक में सोवियत नेता स्टालिन ने दोनों देशों को सोवियत संघ का हिस्सा बनाया था और नागोर्नो-करबाख अजरबैजान को सौंप दिया। आर्मेनियाई लोगों की आबादी अधिक होने के कारण 1980 के दशक में यहां की संसद ने खुद को आर्मेनिया का हिस्सा बनाने के लिए वोट किया। यहीं से विवाद शुरू हुआ।

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