शनि की ढैया और साढ़े साती
शनै: शनै चाल से चलने के कारण शनिदेव को शनिश्चर भी कहा जाता है। जब शनिदेव जन्म राशि से बारहवें, पहले या दूसरे स्थान पर आ जाते हैं तो जातक पर साढ़े साती की शुरुआत हो जाती है जो साढ़े सात वर्षों तक चलती है। शनिदेव गोचर से बारहवें स्थान पर होने से सिर पर, जन्म राशि में होने पर हृदय पर तथा दूसरे स्थान में होने पर पैरों पर उतरते हुए अपना प्रभाव डालते हैं।
शनै: शनै चाल से चलने के कारण शनिदेव को शनिश्चर भी कहा जाता है। जब शनिदेव जन्म राशि से बारहवें, पहले या दूसरे स्थान पर आ जाते हैं तो जातक पर साढ़े साती की शुरुआत हो जाती है जो साढ़े सात वर्षों तक चलती है। शनिदेव गोचर से बारहवें स्थान पर होने से सिर पर, जन्म राशि में होने पर हृदय पर तथा दूसरे स्थान में होने पर पैरों पर उतरते हुए अपना प्रभाव डालते हैं।
जन्म राशि से चौथे अथवा आठवें स्थान में शनिदेव के आने पर ढैया होती है जो ढाई वर्षों तक चलती है। शनिदेव के अशुभ ग्रहों से युत या दृष्ट होने या नीचस्थ होने के कारण जातक को शनिदेव की साढ़े साती या ढैया की अवधि में शारीरिक या मानसिक कष्ट, रोग, कलह, धनाभाव, अपमान, दु:ख, अवनति जैसी विभिन्न समस्याओं से जूझना पड़ सकता है।
शनि के अशुभ प्रभाव से कैसे बचें
जातक द्वारा किए गए पाप कर्मों के लिए शनिदेव समय आने पर दंड देते हैं। शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए ज्योतिष शास्त्र में बहुत से उपाय दिए गए हैं जिनमें हनुमान जी की उपासना, शनि चालीसा का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जप, शनि अष्टक का पाठ, सूर्य देव की उपासना, पीपल के वृक्ष का पूजन, काले घोड़े की नाल वाली अंगूठी धारण करना आदि प्रमुख हैं।
जातक द्वारा किए गए पाप कर्मों के लिए शनिदेव समय आने पर दंड देते हैं। शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए ज्योतिष शास्त्र में बहुत से उपाय दिए गए हैं जिनमें हनुमान जी की उपासना, शनि चालीसा का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जप, शनि अष्टक का पाठ, सूर्य देव की उपासना, पीपल के वृक्ष का पूजन, काले घोड़े की नाल वाली अंगूठी धारण करना आदि प्रमुख हैं।
शनिदेव से संबंधित मंत्र “ॐ प्रां प्री प्रौ स: शनये नम:” का एक, पांच या ग्यारह माला जप प्रतिदिन करने से भी शनिदेव प्रसन्न होते हैं। शनिदेव के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए काले तिल, काली उड़द, काले जूते, छतरी, कंबल, काले पुष्प या वस्त्र, नीलम, भैंस, सरसों का तेल, लोहा आदि का दान शनिवार को करना चाहिए। अल्प मृत्यु का भय और बार-बार होने वाले रोगों से बचाव के लिए शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। माता-पिता एवं बड़े बुजुर्गों का सम्मान करने से भी शनिदेव जातक को शुभ प्रभाव देते हैं।