कहा जाता है कि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी एवं काली माता भी विराजमान रहती है, इसीलिए नवरात्र में सरस्वती पूजन का विशेष महत्व है
सरस्वती वाणी एवं ज्ञान की देवी है। ज्ञान को संसार में सभी चीजों से श्रेष्ठ कहा गया है। इस आधार पर देवी सरस्वती सभी से श्रेष्ठ है। कहा जाता है कि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी एवं काली माता भी विराजमान रहती है। इसका प्रमाण है माता वैष्णों का दरबार जहांं सरस्वती, लक्ष्मी और काली तीनों महाशक्तियां साथ में निवास करती हैं। जिस प्रकार माता दुर्गा की पूजा का नवरात्र में महत्व है, उसी प्रकार इस अवसर पर सरस्वती पूजन का भी विशेष महत्व है। सरस्वती माता कला की भी देवी माना जाती हैं, अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग भी माता सरस्वती की विधिवत पूजा करते हैं।
पौराणिक आधार
भगवान विष्णु के कथनानुसार ब्रह्माजी ने सरस्वती देवी का आह्वान किया। सरस्वती माता के प्रकट होने पर ब्रह्माजी ने उनसे अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर भरने का अनुरोध किया। माता सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ, उससे सा शब्द फूट पड़ा। यह शब्द संगीत के सप्तसुरों में प्रथम स्वर है। इस ध्वनि से ब्रह्माजी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा। हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को वाणी मिल गई। नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी। इससे ब्रह्माजी अति प्रसन्न हुए। उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया। माता सरस्वती का एक नाम यह भी है।
सरस्वती माता के हाथों में वीणा होने के कारण इन्हें वीणापाणि भी कहा जाता है। सरस्वती माता की पूजा की प्रथा सदियों से चली आ रही है। ज्ञान एवं वाणी के बिना संसार की कल्पना करना भी असंभव है। माता सरस्वती इनकी देवी हैं, अत: मनुष्य ही नहीं, देवता एवं असुर भी माता की भक्ति भाव से पूजा करते हैं। सरस्वती पूजा के दिन लोग अपने-अपने घरों में माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर की पूजा करते हैं। इस दिन लोग माता सरस्वती के मंत्रों तथा अन्य प्रकार की पूजा अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।
कैसे करें पूजा इस दिन प्रात: काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर तांबे के पात्र से पवित्र जल चारों तरफ डालें इसके बाद अपने घर के मंदिर या सरस्वती मंदिर में पीले वस्त्र धारण कर सरसों के पीले फूलों से सरस्वती को माला पहनाकर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख में बैठकर व्याधि नाश के लिए इन श्लोकों का 101 बार पाठ करें –
सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो: नम:।।
पीले वस्त्र पहनकर वसंत पंचमी से एक माह तक इस मंत्र का जाप करने से बुद्धि प्रखर व विलक्षण होती है। मानसिक तनाव दूर होता है और आत्मिक शांति मिलती है
ॐ घंटाशूल हलानि शंखमुसले चक्र धनु: सायकं। हस्ताब्र्जैदधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुसुतुल्यप्रभाम्।।
गौरी देह समुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा। पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्।।
ॐ वीणाधारिण्यै नम:।
ऐसे करें कुमारी पूजन
वसंत पंचमी के दो से 10 वर्ष तक की कन्याओं को पीले चावल व पीले पकवानों से भोजन करवाकर उन्हें पीले वस्त्रों का दान देना चाहिए। इस दिन कुमारियों के पांव धोकर वायव्य कोण से ईशान कोण तक (पश्चिम तथा उत्तर दिशा के मध्यम कोण) स्वच्छ भूमि पर आसन बिछाकर उन्हें बिठा दें और गंध, पुष्प, माला आदि से उनका पूजन करें और भोजन कराएं। इस दिन भोजन में श्रीखंड, लडडू, खीर, पीली दाल व शहद का भी यथासम्भव समावेश करें।
शत्रुओं के नाश, दीर्घायु व संकट निवारण के लिए दो वर्ष की कन्या, अकाल मृत्यु निवारण व संतान प्राप्ति के लिए तीन वर्ष की कन्या को, धनागम व कुशाग्र बुद्धि के लिए चार व पांच वर्ष की कन्या को, यश प्राप्ति, विद्यार्थी व राज्य फल प्राप्ति के लिए छह वर्ष की कन्या को और सौभाग्यप्राप्ति, सर्वशांति के लिए सात से दस वर्ष तक की कन्या को भोजन करवाना चाहिए।