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इसलिए आगरा मेयर जीतेगा यह बंदा

समीकरण बता रहे हैं कि इसलिए जीतेगा और हारेगा प्रत्याशी

आगराNov 13, 2017 / 12:11 pm

Vikas Kumar

आगरा. शहर की सरकार चुनने के लिए उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और ऐसे में हर गली चौराहे पर एक ही सवाल है कि आगरा का भावी प्रथम नागरिक कौन होगा। चुनाव मैदान में चारों प्रमुख दलों के अलावा कुछ अन्य दल भी मैदान में है, वे भले ही जीत की स्थिति में नहीं है लेकिन हार—जीत का समीकरण बनने बिगाडने का दम जरूर रखते हैं।
इसलिए जीतेगा और हारेगा प्रत्याशी

भाजपा के नवीन जैन

मजबूत पक्ष—
1. जातिगत समीकरण पक्ष में दिखाई देते हैं, क्योंकि वैश्य वर्ग के मतदाता आगरा में सबसे अधिक हैं लेकिन कांग्रेस ने विनोद बंसल को टिकट देकर इस वर्ग में सेंध लगा दी है। ऐसे में जो वैश्य वोट कांग्रेस की झोली में जाएंगे तो नवीन जैन की जीत खिसकती नजर आएगी। दूसरा जीएसटी से सबसे अधिक वैश्य वर्ग ही प्रभावित हुआ है और इसका भी नुकसान नवीज जैन को ही उठाना पडेगा।
2. देश सहित उत्तरप्रदेश के सूबे में भाजपा की लहर चल रही है और इसका फायदा उन्हें मिलने की संभावना है लेकिन इसके अपने नुकसान भी हैं। केन्द्र में मोदी सरकार को तीन साल से अधिक का समय हो गया है और ऐसे में उनका हर एक जुमला भी एक एक वोट खिसकाता नजर आएगा।

3.भाजपा के पास आरएसएस जैसा कैडर है और इसका तोड वर्तमान में अन्य किसी पार्टी के पास नहीं है।

नवीन जैन की कमजोरियां—

1. भाजपा व संघ के जाने माने चेहरे पुरुषोत्तम खंडेलवाल, सुरेन्द्र व प्रमोद गुप्ता को दरकिनार कर नवीन जैन को टिकट देने से जबरदस्त अन्दरूनी नाराजगी है, जो जैन पर भारी पड सकती है। ऐसे में भीतरघात की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता।
2. आसानी से उपलब्धता नहीं होना भी जैन के लिए नुकसानदायक माना जा रहा है। आगरा में कहा जाता है कि वर्तमान में ही नवीन जैन से मिलना मुश्किल होता है तो मेयर बनने के बाद तो मुश्किल ही कोई आम आदमी या पार्टी का जमीनी कार्यकर्ता उनसे मिल पाएगा।
3 . गत मेयर इन्द्रजीत मौर्या के भाजपा से जीतने के बाद सपा में जाना, बाद में वापस भाजपा में आ जाना भी आम शहरवासी को नहीं पचा। इसलिए आगरा में गंदगी जैसे जन समस्याओं के लिए जनता इसके लिए भाजपा को भी कहीं ना कहीं जिम्मेदार मानती है।
सपा के राहुल चतुर्वेदी

मजबूत पक्ष

1. सपा की ओर से नवीन, निर्विवाद व युवा चेहरे पर दांव लगाया गया है और ऐसे में राहुल की कमजोरियां खोजना विपक्ष के लिए मुश्किल हो रहा है। इसके अलावा आसानी से उपलब्धता भी मजबूत पक्ष है और यदि वे इसे भुनाने में कामयाब रहे तो जीत उनकी झोली में आ सकती है।
2. आगरा में माना जा रहा है कि ब्राहृमण मतदाता उनके पक्ष में पूरी तरह से गोलबंद हो गया है। ब्राहृमण मतदाता को भाजपा का परंपरागत मतदाता माना जाता है और ऐसे में यह नवीन जैन के लिए नुकसान करेगा तो राहुल फायदे का सौदा है।

3. आगरा में मुस्लिम मतदाता भी बहुतायत में है और इसे सपा का वोटर माना जाता है। अभी मुस्लिम मतदात को अन्य विकल्प नजर भी नहीं आ रहा है और ऐसे में गोलबंद कर सपा में आने की पूरी उम्मीद राहुल कर सकते है।
कमजोरियां
1. माना जा रहा है कि सपा का संगठन अभी भी पूरी तरह से उनके साथ नहीं लगा है।

2. सपा का गत विधानसभा चुनाव हार जाना।

3. सपा के स्टार प्रचारकों का आगार में कोई कार्यक्रम नहीं होना, हालांकि मुस्लिम बहुल इलाके में सपा के केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य मौलान इकबाल कादरी को उतारकर इसकी कमी पूरी करने का प्रयास किया गया है।

बसपा के दिगम्बर सिंह धाकरे

मजबूत पक्ष
1. अनुसूचित जाति का एकमुश्त वोट। ऐसे में यदि अन्य पार्टियां इस वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाई तो धाकरे के वोटों कि गिनती एक तय संख्या के आगे से ही शुरू होगी। हालांकि सेंधमारी का खेल लोकसभा व विधानसभा चुनावों में जमकर हुआ है और अनुसूचित जाति को बसपा के पट्टे माने जाने वाली स्थिति अब नहीं रही है।
2. क्षत्रिय मतदाताओं से आशा।

3. बसपा की गत लोकसभा व विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार से सहानुभूति की उम्मीद।


कमजोर पक्ष

1. एत्मादपुर में क्षत्रिय व जाटव समाज में हुए झगडे का असर इस चुनाव में देखने को मिल सकता है और दोनों ही मतदाता धाकरे से छिटक कर दूसरी पार्टी में जा सकता हैं।
2. बसपा के तत्कालीन समय के कदृदावर नेता नसीमुदृदीन सिदृदकी के भाजपा के क्षत्रिय नेता दयाशंकर की पुत्री व पत्नी के खिलाफ बोलने से क्षत्रिय मतदाताओं में आज तक नाराजगी बनी हुई है और इसका नुकसान उठाना पड सकता है।
3. बसपा की विधानसभा व लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से हार पार्टी के खिलाफ जा रही है। लोग यह तक मान बैठे हैं कि बसपा धीरे—धीरे खत्म् होती होती जा रही है।

कांग्रेस के विनोद बंसल
मजबूत पक्ष

1. जीएसटी के खिलाफ माहौल का कुछ फायदा मिलने की संभावना।

2. वैश्य वर्ग में सेंधमारी की कोशिश

कमजोर पक्ष

1. उत्तरप्रदेश जैसे सूबे का कांग्रेस का नामलेवा तक खत्म हो जाना ।
2. जनता का यह माना जाना कि कांग्रेस लडाई में नहीं है।

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