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चीनी मिल पर सियासी संग्राम, बीजेपी सांसद और विधायक में ठनी

मुंडेरवा मिल के चालू होने पर श्रेय लेने को लेकर मची आपाधापी

बस्तीAug 02, 2017 / 04:39 pm

अखिलेश त्रिपाठी

Bjp mp Harish dwivedi and Dayaram Chaudhary

Bjp mp Harish dwivedi and Dayaram Chaudhary

बस्ती. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विधानसभा चुनाव के दौरान बस्ती की 18 साल से बंद पड़ी चीनी मिल को चलाने का वादा किया था और यूपी मे सरकार बनते ही योगी सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक मे ही मुंडेरवा मिल को चालू करने की घोषणा कर दी, मगर अब इस मिल को लेकर सियासत शुरू हो गई है। बीजेपी के सांसद और विधायक के बीच इसका श्रेय लेने को लेकर आपाधापी मची है।

बीजेपी विधायक दयाराम चौधरी और सांसद हरीश द्विवेदी दोनों ने मुंडेरवा मिल के परिसर मे मिल को चालू कराने का श्रेय लेने के लिये अलग अलग खुद के अभिनंदन का समारोह का आयोजन तक कर डाला। सांसद हरीश द्विवेदी ने 22 जुलाई को मिल परिसर मे एक कार्यक्रम किया जिसमें सदर विधायक दयाराम चौधरी नही पहुंचे।


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वहीं बुधवार को सांसद की सभा के जवाब में विधायक दयाराम चौधरी ने भी अपना अभिनंदन समारोह आयोजित कर जनता का हिमायती बनने की कोशिश की। सांसद मिल शुरू कराने के लिये पीएम मोदी से कई बार मिलने की बात कर रहे हैं तो विधायक सीएम योगी से व्यक्तिगत मिलकर मिल को चालू कराने मे अहम भूमिका निभाने का दंभ भर रहे हैं। वहीं इस मामले पर बीजेपी की फजीहत हो रही है। पार्टी इस प्रकरण के बाद कहीं न कहीं असहज नजर आ रही है, एक ही कार्यालय मे बैठकर जनहित मुद्दे पर राय रखने वाले नेताओं के रास्ते आज अलग अलग हो गये हैं।


1999 में बंद हुई थी मुंडेरवा चीनी मिल

1999 में घाटे में चल रही मुंडेरवा चीनी मिल बंद कर दी गई थी, जिसके बाद इसे चालू करने के लिए किसानों ने वृहद आंदोलन चलाया। दिसंबर 2002 में तीन किसान शहीद हो गए। शहीद किसानों जगदीशपुर के बद्री चौधरी ,मेंहडा पुरवा के धर्मराज चौधरी और चंगेरा -मंगेरा के तिलकराज चौधरी की स्मृति में हर साल शहीद किसान मेला लगता है और इसमें पूरे प्रदेश भर के किसान जुटते हैं।

यह चीनी मिल 1932 में स्थापित हुई थी। शुगर मिल्स प्राइवेट लिमिटेड पर गन्ना मूल्य बकाया हो जाने के कारण उपजे किसान विरोध के कारण प्रदेश सरकार ने 26 अक्टूबर 1978 को मिल पर अपना रिसीवर बैठा दिया। 28
अक्टूबर 1984 को मिल राज्य चीनी निगम को दे दी गयी। पुरानी तकनीक और कम पेराई क्षमता के कारण लगातार घाटे मे चल रही मिल को उच्चीकृत करने के लिए 1989-90 में स्थानीय लोगो से 44 एकड़ भूमि क्रय कर उस पर नई मिल का काम शुरू हुआ। एक चौथाई काम पूरा होने के बाद सरकार ने 1999 मे पुरानी मिल के साथ नई मिल को लगाने का काम भी हमेशा के लिए बंद करने का निर्णय सुना दिया था।

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