१. मानव अधिकार व सार्वभौमिक घोषणा पत्र – कुल अनुच्छेद (३०), अंगीकृत (१० दिसम्बर १९४८), अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन (फरवरी १९४६), प्रथम अध्यक्ष (फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट), विश्व मानव अधिकार दिवस (१० दिसम्बर १९५० से)।
२. प्रवर्तन – संपूर्ण भारत में (कुछ शर्तों के साथ जम्मू-कश्मीर में भी)
३. अनुमति – ८ जनवरी १९९४ (शंकर दयाल शर्मा द्वारा)।
४. लागू – २८ सितंबर १९९३ (गणतंत्र के ४४वें वर्ष में), कुल ८ अध्याय, ४३ धाराएं।
५. संशोधन – २३ सितंबर २००६।
६. प्रथम अध्यक्ष – श्री रंगनाथ मिश्र।
७. उद्देश्य – मानव अधिकारों का बेहतर संरक्षण, सुरक्षा आयोग का गठन तथा राज्य आयोग का गठन।
८. वर्तमा अध्यक्ष – श्री एचएल दत्तू (२०२१ तक)।
९. अगले अध्यक्ष – जेएस खेहर।
१०. मुख्यालय – नई दिल्ली।
११. परिभाषाएं – सशस्त्र बल(२ क), मानव अधिकार (२ घ), महिला आयोग (२ ञ), लोकसेवक (२ ड)।
१२. अधिनियम संख्यांक – ४३
१३. राष्ट्रीय आयोग (धारा -३) – गठन (भारत सरकार द्वारा), सदस्य (८ तथा १ अध्यक्ष), पदावधी (५ वर्ष या ७० वर्ष जो पहले हो), नियुक्ति (नियुक्ति समिति द्वारा -६ सदस्यी), त्यागपत्र (धारा -५ राष्ट्रपति को)।
१४. राज्य आयोग (धारा -२१) गठन (राज्य सरकार द्वारा), सदस्य (२ तथा १ अध्यक्ष), पदावधी (५ वर्ष या ७० वर्ष जो पहले हो), नियुक्ति (५ सदस्यी नियुक्ति समिति द्वारा), त्यागपत्र (धारा २३ – राज्यपाल को)।
१५. धारा – ३० राज्य सरकार सेशन न्यायालय को मानव अधिकार न्यायालय घोषित करेगी।
१६. धारा – ३१ विशेष लोक अभियोजन जिसे ७ वर्ष का अनुभव हो।
१७. आयोगों के राष्ट्रीय अध्यक्ष – अल्पसंख्यक आयोग (सैय्यद हसन रि•ावी), एसएसी आयोग (रामशंकर कलेरिया), एसटी आयोज (नंद कुमार सई), महिला आयोग (ललीता कुमारमंगलम), मानवाधिकार आयोग (एचएल दत्तू)।
१८. मानवाधिकार राष्ट्रीय आयोग – सदस्य (शरदचंद्र सिन्हा, ज्योतिका कालरा, डी मुरुगेसन, साइरस जोसेफ) महासचिव (सत्य नारायण मोहंती)।
१९. राज्य मानवाधिकार आयोग – अध्यक्ष (मनोहर ममतानी), सचिव (विनोद कुमार), सदस्य (विरेंद्र मोहन कंतर)।
२०. एमपी राज्य आयोगों के अध्यक्ष – अल्प संख्यक आयोग (निया•ा मोहम्मद खां), एससी आयोग (भूपेंद्र आर्य), एसटी आयोग (नरेंद्र मरावी), महिला आयोग (लता वानखेडे़)।
२१. नियम बनाने की शक्ति – केंद्र सरकार (धारा -४०), राज्य सरकार (धारा -४१)।
भाग द्वितीय – सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम – १९५५
१. उद्देश्य – अस्पृश्यता (अनुच्छेद १७) के प्रचार, आचरण व निर्योग्यता हेतु दंड।
२. अनुमति – ८ मई १९५५ (राजेंद्र प्रसाद द्वारा)
३. लागू – १ जून १९५५ (गणतंत्र के ६वें वर्ष)
४. प्रर्वतन – संपूर्ण भारत में
५. अधिकार – संविधान के अनुच्छेद १७ से प्राप्त।
६. कुल – १७ धाराएं व १ अनुसूची।
७. पुराना नाम – अस्पृश्यता अपराध अधिनियम (संशोधन १९७६ से परिवर्तित)।
८. अधिनियम संख्यांक – २२
९. परिभाषाएं – उपधारा – २(१०५) होटल (जलपान गृह, भोजनालय, कॉफी हाउस कैफे)।
– उपधारा – २(१) सिविल अधिकार
– उपधारा – २(२) स्थान (गृह, भवन, तंबू, यान, जलयान, अन्य संरचना व परिसर)।
– उपधारा – २(४(१८)) अनुसूचित जाति (संविधान के अनुच्छेद ३६६ खंड २४ में वर्णित)।
– उपधारा – २(५) दुकान।
१०. अपराध – संज्ञेय व अजमानतीय प्रवृत्ति के (धारा १५)।
११. विचारण – प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्टे्रट व उससे ऊपर के न्यायालय द्वारा (धारा -१५)।
१२. नियम बनाने की शक्ति – केंद्र सरकार (धारा १६ ख)।
१३. परिवीक्षा आयु – १४ वर्ष से अधिक पर लागू (धारा १६ क)।
१४. धारा-४ (सामाजिक निर्योग्यता), धारा-३ (धार्मिक निर्योग्यता), धारा -५ (अस्पतालों में प्रवेश वर्जित हेतु), धारा-६ (माल बेचने हेतु वर्जित) तथा धारा- ७ (अस्पृश्यता उद्भूत अपराध) के लिए दंड कम से कम १ माह व अधिकतम ६ माह का कारावास तथा कम से कम १०० व अधिकतम ५०० रुपए का अर्थदंड।
१५. धारा १०(क) – सामूहिक जुर्माना राज्य सरकार अधिरोपित करेगी।
१६. धारा १४ (२) – कम्पनी (निदेशक, प्रबंधक, सचिव, फर्म व अन्य सभी प्राधिकारी जो भारसाधक हो)।
१७. धारा – ११ – पाश्चात्वर्ती दोषसिद्धी पर वर्जित शास्ति (द्वितीय अपराध – ६ माह से १ वर्ष का कारावास तथा २०० से ५०० रुपए का जुर्माना तथा तृतीय अपराध – १ वर्ष से २ वर्ष का करावास तथा ५०० से १००० रुपए का जुर्माना)।
१. उद्देश्य – एससी-एसटी को अत्याचार से मुक्ति दिलाना, उनका पुर्नवास तथा विशेष न्यायालय का गठन।
२. अनुमति – ११ सितंबर १९८९ (शंकरदयाल शर्मा द्वारा)
३. लागू – ३० जनवरी १९९० (गणतंत्र के ४०वें वर्ष)
४. प्रवर्तन – संपूर्ण भारत में लागू जम्मू कश्मीर को छोडक़र
५. अपराध – संज्ञेय, अजमानती तथा अशमनीय होंगे।
६. विधि – अपूर्ण विधि (आईपीएस, सीआरपीसी व साक्ष्य अधिनियम द्वारा पूर्ण)।
७. आईपीएस की धारा ४१ के अधीन अधिनियम विशेष विधि की कोटी में आएगा।
८. कुल – ५ अध्याय व २३ धाराएं।
९. परिभाषाएं – धारा – २(क) अत्याचार, धारा – २(व) संहिता (सीआरपीसी), धारा २(घ) विशेष न्यायालय, धारा -२ (ड.)विशेष लोक अभियोजक।
१०. दंड (धारा-३) – उपधारा -१ (२६ अपराध के लिए ६ माह से ५ वषर्् का कारावास व जुर्माना), उपधारा २ (७ अपराध हेतु ६ माह से मृत्युदंड व जुर्माना)।
११. धारा – १४ – विशेष न्यायालय (राज्य सरकार किसी सेशन न्यायालय को उच्च न्यायालय की सहमति से शीघ्र विचारण हेतु बनाएगी।)
१२. धारा -१५ – विशेष लोक अभियोजक (राज्य सरकार ७ वर्ष के विधि व्यवसाय का अनुभव रखने वाले किसी अधिवक्ता को बनाएगी।)
१३. धारा – १६ – राज्य सरकार सामूहिक जुर्माना लगाने की शक्ति रखेगी।
१४. धारा – १८ – संहिता की धारा ४३८ के अनुसार अधिनियम में अग्रिम जमानत नहीं दी जाएगी।
१५. धारा – १९ – परिवीक्षा अवधी (१८ वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति ही अपराधी होगा)।
१६. धारा – २३ – नियम बनाने की शक्ति केंद्र सरकार के पास होगी।
१७. अधिनियम सिद्धांत – संरक्षा विभेंद का सिद्धांत लागू रहेगा।
१८. नियम १९९५ के उपनियम १२ (४) में राहत व पुर्नावास की व्यवस्था है।
१९. यह अधिनियम तभी लागू होगा जब अभियुक्त एससी-एसटी का सदस्य न हो तथा पीडि़त सदस्य हो।
२०. अधिनियम संख्यांक – ३३
२१. कुल प्रभावी नियमों की संख्या – १८
२२. मप्र में इस अधिनियम का सहयोगी अधिनियम ‘मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति आदिवासी राहत योजना नियम १९७९ (यथा संशोधन)’ लागू है।
२३. संशोधन – संशोधन अधिनियम २०१५ में लाया गया जो २६ जनवरी २०१६ से लागू है।
प्रावधान (धारा २ (२ड़ घ) में साक्षी, धारा २ (खख) में आश्रित, धारा २(ख ग) में आर्थिक बहिष्कार जोड़ा गया)। विशेष न्यायालय का नाम बदलकर उन्नय विशेष न्यायालय किया गया, धारा २ (ड. ख) में सामाजिक बहिष्कार शब्द को परिभाषित किया गया।
२४. संशोधन विनियम – २०१६ में केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय द्वारा १४ अप्रैल २०१६ को अंबेडकर की जयंती में लागू किया गया। प्रावधान (जांच ६० दिन में होनी चाहिए तथा जांच रिपोर्ट उसके ३० दिन में जांच अधिकारी द्वारा सौंपी जाएगी। साथ ही जांच अधिकारी ३९ पुलिस अधीक्षक व उससे ऊपर का होगा।)