सांचौर से करीब 60 किमी दूरी पर नेहड़ के 20 के करीब गांव ढाणियों में कच्ची बेरियां वर्षों से गांव वालों के लिए पेयजल का मुख्य स्रोत है। पानी की कमी से जूझ रहे इस क्षेत्र के ग्रामीण उसी तरीके का उपयोग पेयजल के रूप में पानी के लिए करते हैं, जो उनके पूर्वज करते आए हैं। यहां पेयजल का मुख्य स्रोत कच्ची बेरियां है। यहां 10 से 15 फीट तक खुदाई पानी एकत्र होने लग जाता है।
इन छोटी सी बेरियां में पानी एकत्र हो जाता है और सवेरे ठहरे हुए साफ पानी को पेयजल के रूप में प्राप्त करने के लिए ग्रामीणों की भीड़ जुटती है। अक्सर एक कच्ची बेरी में पांच से 7 दिन तक पानी उपलब्ध रहता है और उसके बाद पानी रीत जाता है। इस स्थिति में ग्रामीण पानी के लिए दूसरी बेरी की खुदाई करते हैं और उसका उपयोग तब तक करते हैं, जब तक पानी मुहैया होता रहता है।
पूरी गर्मी की सीजन में इसी तरह से इन ग्रामीणों को प्यास बुझाने के लिए पानी मुहैया होता है। ग्रामीणों की मानें तो टैंकरों से पानी मंगवाना महंगा पड़ता है। इधर, इस साल चुनावी माहौल में जल परिवहन की प्रक्रिया भी खटाई में पड़ती जा रही है।
नर्मदा से नहीं मिलता पानी
नर्मदा परियोजना का दायरा काफी बड़ा है और सिंचित क्षेत्र बढ़ा भी है। पेयजल के रूप में सांचौर के आस पास के गांवों में पानी मुहैया होता है, लेकिन दूसरा पक्ष यह भी है कि नेहड़ के इन गांवों में बनी नर्मदा वितरिकाएं मिट्टी से अटी है, जिससे पानी आज तक अभावग्रस्त गांवों तक नहीं पहुंचा।
इन गांवों में कच्ची बेरियों का सहारा
खेजडिय़ा, पिपराला, आकोडिय़ा, रिडक़ा, मिठा खागला, वरां की ढाणी, भवातड़ा, होती कोली की ढाणी, रता कोली की ढाणी, कुकडिय़ा, मोबता कोली की ढाणी, जोरादर, सांकरिया, भलाइया, सूंथड़ी, सुराचंद, शिवगढ़ समेत अन्य गांव कस्बों में कच्ची बेरियों पर निर्भरता रहती है।