इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंजीनियरिंग काॅलेजों को दिया 2013 के अनुसार बढ़ी हुई फीस लेने का आदेश
इलाहाबाद. उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने एआईसीटीई से मान्यता प्राप्त इंजीनीयरिंग की शिक्षा दे रहे प्राइवेट काॅलेजों को राहत दी है। बीटेक, एमटेक व एमबीए कोर्स की पढ़ाई के लिए प्राविधिक शिक्षा विभाग द्वारा कम की गयी फीस के खिलाफ इंजीनीयरिग काॅलेज की याचिका पर कोर्ट ने आदेश दिया है कि काॅलेज सरकार द्वारा कम की गयी फीस की जगह 2013 में बढ़ी हुई फीस छात्रों से ले।
सरकार के एडमिशन एण्ड फीस फिक्शेसन कमेटी ने अभी हाल ही में नौ जून 2017 को तय किया था कि प्राइवेट इंजीनीयरिग काॅलेज वर्ष 2017-18, 18-19,व 19-20 में बीटेक, एमटेक, एमबीए आदि की पढ़ाई के लिए छात्रों से अब 68 हजार 424 रूपया फीस लेंगे। जबकि वर्ष 2013 में सरकार का निर्णय था कि इंजीनीयरिंग काॅलेज उक्त सभी कोर्स की पढ़ाई के लिए छात्र से 86 हजार 800 रूपया बतौर फीस चार्ज करेगा। मथुरा के हिन्दुस्तान काॅलेज आॅफ साइंस एण्ड टेक्नालाॅजी ने याचिका दायर कर सरकार के फीस कम करने के फैसले को चुनौती दी थी।
याची के वकील अनूप त्रिवेदी का तर्क था कि प्रदेश सरकार के प्राविधिक शिक्षा विभाग ने बिना कोई कारण बताए काॅलेजो की फीस कम कर दी है। कहा गया कि फीस कम करने में काॅलेज के इंफ्रास्ट्रक्चर को ध्यान में नहीं रखा गया। अधिवक्ता का तर्क था कि जब सरकार ने खुद ही 26 अगस्त 2013 को 86 हजार 800 रुपया फीस तय की थी तो 2017 में वही फीस कम कर 68 हजार 424 करने का कोई कारण नहीं था।
फिलहाल कोर्ट ने इंजीनीयरिंग काॅलेजों के पक्ष में आदेश पारित कर उसे पुरानी बढ़ी फीस छात्रों से लेने का निर्देश दिया है और सरकार से याचिका पर दो सप्ताह में जवाब मांगा है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया है कि यदि इंजीनीयरिंग काॅलेज केस हार जाता है को उसे ली गयी बढ़ी फीस छात्रो को छह प्रतिशत की दर से वापस करना होगा। यह आदेश जस्टिस पीकेएस बघेल ने प्राइवेट मान्यता प्राप्त इंजीनीयरिंग काॅलेज की याचिका पर दिया है।