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भोपाल

12वीं पास किसान ऐसे बना मुख्यमंत्री, 1957 में पहली बार बने विधायक

1941 में अपना राजनीतिक कॅरियर शुरू करने वाले पटवा सबसे पहले इंदौर राज्य प्रजा मंडल में सदस्य बने। फिर 1942 में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ज्वाइन किया।

भोपालDec 28, 2016 / 11:33 am

Anwar Khan

sundar lal patwa

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भोपाल। मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे सुंदर लाल पटवा का बुधवार अलसुबह 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने सोते समय अंतिम सांस ली। उनके निधन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई नेताओं ने गहरा दुःख व्यक्त किया है।

पटवा प्रदेश की राजनीति के कद्दावर नेता थे। न केवल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, बल्कि भाजपा की जड़ें मध्यप्रदेश में मजबूत करने में भी उनका अहम योगदान रहा। सिर्फ 12वीं पास पटवा पेशे से किसान थे, फिर भी अपनी काबिलियत के बल पर उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का पद हासिल किया। आइए जानते हैं पटवा के जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें….


मप्र के मंदसौर जिले के कुकड़ेश्वर में जन्मे पटवा दो भाषाओं के अच्छे जानकार थे। उन्हें हिंदी के अलावा अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था। कम पढ़े लिखे होने के बावजूद उनकी प्रतिभा बचपन में ही दिखने लगी थी। जो काम करते थे, उसे पूरी लगन से पूरा करना उनकी आदत बन चुकी थी। उन्होंने खेलकूद, उद्योग, संगीत और सहकारिता में खासी रुचि रखी। 




7 महीने जेल में रहे
1941 में अपना राजनीतिक कॅरियर शुरू करने वाले पटवा सबसे पहले इंदौर राज्य प्रजा मंडल में सदस्य बने। फिर 1942 में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ज्वाइन किया। 1947 से 1951 तक वे संघ में प्रचारक की भूमिका निभाते रहे। 1948 में संघ के आंदोलन में सात महीने तक जेल में भी रहे। 1951 में जनसंघ के सदस्य बने। 




विधानसभा में हमेशा उपस्थिति
1957 में पहली बार विधानसभा के सदस्य बने और करीब 10 साल लगातार वे विधानसभा सदस्य के रूप में काम करते रहे। 1967 से 1974 तक उन्होंने जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष, संचालक, राज्य सहकारी बैंक, राज्य सहकारी विपणन संघ और प्रदेश जनसंघ कोषाध्यक्ष के रूप में भी काम किया।

1990 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद उन्हें पहली बार मुख्यमंत्री बनाया गया। इस कार्यकाल में वे 1992 तक सीएम रहे। फिर 1993 में उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री चुना गया। 1986 में उन्हें भाजपा का मप्र अध्यक्ष चुना गया। 1989 में हुए अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में उन्हें ‘विधान गौरव’ उपाधि से भी सम्मानित किया गया।

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