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ग्वालियर

स्वाइन फ्लू, इन बातों का रखेंगे ख्याल तो नहीं होंगे इंफेक्टेड

एन्फ्लूएंजा वायरस की खासियत यह है कि यह लगातार अपना स्वरूप बदलता रहता है। इसकी वजह से यह उन एंटीबॉडीज को भी छका देता है जो पहली बार हुए एन्फ्लूएंजा के दौरान विकसित हुई थीं। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का भी इस वायरस पर असर नहीं होता।

ग्वालियरAug 21, 2016 / 05:01 pm

rishi jaiswal

swine flu

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ग्वालियर। किसी व्यक्ति को स्वाइन फ्लू हुआ है इसकी पहचान करना बेहद जरूरी है क्योंकि इसके अभाव में उसे गंभीर अवस्था का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही उसके संपर्क में आकर अन्य व्यक्तियों में भी यह संक्रमण फैल सकता है। 
आमतौर पर पशुओं और पालतू जानवरों को होने वाले वायरस के हमले कभी इंसानों तक नहीं पहुंचते। इसकी वजह यह है कि जीव विज्ञान की दृष्टि से इंसानों और जानवरों की बनावट में फर्क है। मध्य 20वीं सदी से अब तक के चिकित्सा इतिहास में केवल 50 केसेस ही ऐसे हैं जिनमें वायरस सूअरों से इंसानों तक पहुँचा, लेकिन देखने में आया है कि जो लोग सूअर पालन के व्यवसाय में हैं और लंबे समय तक सूअरों के संपर्क में रहते हैं, उन्हें स्वाइन फ्लू होने का जोखिम अधिक रहता है।





इन लक्षणों को न करें नजरंदाज 
स्वाइन फ्लू के लक्षण भी सामान्य एन्फ्लूएंजा के लक्षणों की तरह ही होते हैं। बुखार, तेज ठंड लगना, गला खराब हो जाना, मांसपेशियों में दर्द होना, तेज सिरदर्द होना, खाँसी आना, कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण इस बीमारी के दौरान उभरते हैं। अब इंसानों में जो स्वाइन फ्लू का संक्रमण हो रहा है, वह तीन अलग-अलग तरह के वायरसों के सम्मिश्रण से उपजा है। फिलहाल इस वायरस के उद्गम अज्ञात हैं।

वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हैल्थ की रिपोर्ट के अनुसार यह वायरस अब केवल सूअरों तक सीमित नहीं है, इसने इंसानों के बीच फैलने की ताकत हासिल कर ली है। अमेरिका में 2005 से अब तक केवल 12 मामले ही सामने आए हैं। एन्फ्लूएंजा वायरस की खासियत यह है कि यह लगातार अपना स्वरूप बदलता रहता है। इसकी वजह से यह उन एंटीबॉडीज को भी छका देता है जो पहली बार हुए एन्फ्लूएंजा के दौरान विकसित हुई थीं। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का भी इस वायरस पर असर नहीं होता।




जरूर रखें ये सावधानियां

(1) इस बीमारी से बचने के लिए हाइजीन का खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए। साथ ही खांसते समय और झींकते समय टीशू से कवर रखें, इसके बाद टीशू को नष्ट कर दें।
(2) बाहर से आकर हाथों को साबुन से अच्छे से धोएं और एल्कोहल बेस्ड सेनिटाइजर का इस्तेमाल करें।
(3) जिन लोगों में स्वाइन फ्लू के लक्षण हों तो उन्हें मास्क पहनना चाहिए और घर में ही रहना चाहिए।
(4) स्वाइन फ्लू के लक्षण वाले मरीज से हाथ मिलाने सहित क्लोज कांटेक्ट से बचें। रेग्यूलर ब्रेक पर हाथ धोते रहें।
(5) जिन लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही हो और तीन-चार दिन से हाई फीवर हो, उन्हें तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
(6) स्वाइन फ्लू के टेस्ट के लिए गले और नाक के द्रव्यों का टेस्ट होता है जिससे एच1एन1 वायरस की पहचान की जाती है, ऐसा कोई भी टेस्ट डॉक्टर की सलाह के बाद ही करवाएं।




यह है खतरा 

1930 में पहली बार एच1एन1 वायरस के सामने आने के बाद से 1998 तक इस वायरस के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। 1998 और 2002 के बीच इस वायरस के तीन विभिन्न स्वरूप सामने आए। इनके भी 5 अलग-अलग जीनोटाइप थे। मानव जाति के लिए जो सबसे बड़ा जोखिम सामने है वह है स्वाइन एन्फ्लूएंजा वायरस के म्यूटेट करने का जो कि स्पेनिश फ्लू की तरह घातक भी हो सकता है। चूंकि यह इंसानों के बीच फैलता है इसलिए सारे विश्व के इसकी चपेट में आने का खतरा है। 



यह है इलाज 

इस बीमारी में संक्रमण के लक्षण प्रकट होने के दो दिन के अंदर ही एंटीवायरल ड्रग देना जरूरी होता है। इससे एक तो मरीज को राहत मिल जाती है व बीमारी की तीव्रता भी कम हो जाती है। तत्काल किसी अस्पताल में मरीज को भर्ती कर दें ताकि पैलिएटिव केअर शुरू हो जाए और तरल पदार्थों की आपूर्ति भी पर्याप्त मात्रा में होती रह सकें। अधिकांश मामलों में एंटीवायरल ड्रग व अस्पताल में भर्ती करने पर सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।



स्वाइन फ्लू से बचने के लिए घरेलू उपचार

1. प्राणायाम : गले और फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए रोजाना प्राणायाम करें और जॉगिंग करें। आपको स्वस्थ रखने के साथ ही यह हर बीमारी के लिए फायदेमंद है जो कि नाक, गले और फेफड़ों से संबंधित हैं।
2. तुलसी : तुलसी की पत्तियां दोनों तरफ से धुली हुई तुलसी की पत्तियां रोज सुबह खाएं। तुलसी का अपना एक चिकित्सीय गुण है। यह गले और फेफड़ों को साफ रखती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर इसके संक्रमण से बचाती है।
3. गिलोय : गिलोई कई क्षेत्रों में सामान्य रूप से पाई जाती है। गिलोई की एक फुट लंबी शाखा लें इसमें तुलसी की 5-6 पत्तियां मिलाकर इसे 15-20 मिनट तक उबाल लें, जब तक कि इसमें इसके तत्व ना घुल जाएं। इसमें स्वादानुसार काली मिर्च, सेंधा नमक (यदि व्रत है तो) या काला नमक, मिश्री मिला लें। इसे ठंडा होने दें और गुनगुना हो जाने पर सेवन करें। इम्यूनिटी के लिए यह कारगर है। यदि गिलोई का पौधा उपलब्ध नहीं हो तो हमदर्द या अन्य किसी ब्रांड का गिलोई पाउडर इस्तेमाल कर यह काढ़ा बना सकते हैं।
4. लहसुन : जो लोग लहसुन खाते हैं वे रोज सुबह दो कलियां कच्ची चबा सकते हैं। यह गुनगुने पानी से लिया जा सकता है। अन्य चीजों की बजाय लहसुन से इम्यूनिटी ज्यादा बढ़ती है।
5. ग्वारपाठा : ग्वारपाठा आसानी से उपलब्ध पौधा है। इसकी कैक्टस जैसी पतली और लंबी पत्तियों में सुगंध रहित जैल होता है। इस जैल को एक टी-स्पून में पानी के साथ लेने से इम्यूनिटी बढ़ेगी।
6. नीम : नीम में हवा को साफ करने का गुण होता है जिससे यह वायुजनित बीमारियों के लिए कारगर है, स्वाइन फ्लू के लिए भी। आप खून को साफ करने के लिए रोज 3-5 नीम की पत्तियाँ चबा सकते हैं।
7. विटामिन सी : खट्टे फल और विटामिन सी से भरपूर आंवला जूस आदि का सेवन करें। चूंकि आंवले का जूस हर महीने नहीं मिलता है (खास तौर पर चार महीने) ऐसे में आप पैक्ड आंवला जूस भी ले सकते हैं।
8. कपूर : गोली के आकार का कपूर का टुकड़ा महीने में एक या दो बार लिया जा सकता है। बड़े लोग इसे पानी के साथ निगल सकते हैं और छोटे बच्चों को यह आलू या केले के साथ मलकर दे सकते हैं क्योंकि इसे सीधा लेना मुश्किल होता है। याद रखें कपूर को रोजाना नहीं लेना है इसे महीने में एक बार ही लें।
9. गुनगुना दूध: जिन लोगों को दूध से एलर्जी नहीं है वे रोज रात को दूध में थोड़ी हल्दी डालकर ले सकते हैं।
10. हाइजीन : अपने हाथों को रोजाना लगातार धोते रहें और साबुन लगाकर गरम पानी से 15-20 सेकंड्स के लिए धोये। खासतौर पर खाना खाने से पहले और किसी भी ऐसी चीज को छूने के बाद जिसमें आपको लगता है कि यहां पर फ्लू के वायरस हो सकते हैं जैसे कि दरवाजे का हैंडल या बस, ट्रेन आदि में सफर के बाद हाथ जरूर धोएं।
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