स्लीपर, जनरल कोच में भी हों आग बुझाने के उपकरण : कैग
कैग ने कहा है कि स्लीपर, साधारण अनारक्षित एवं सीटिंग कोचों में आग बुझाने वाले फायर एक्सटिंग्विशर नहीं लगाए गए हैं
नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने ट्रेनों के स्लीपर एवं सामान्य यात्री कोचों में आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए जाने तथा गाड़यिों में धूम्रपान प्रतिबंधित करने के लिए रेलवे अधिनियम 1989 में संशोधन नहीं करने पर भारतीय रेलवे की खिंचाई की है। संसद के दोनों सदनों में मंगलवार को पेश कैग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2011-12 से 2013-14 के दौरान 20 रेल दुर्घटनाओं को आग लगने की दुर्घटना के रूप में चिह्नित किया गया है और उनमें सर्वाधिक 8 दुर्घटनाओं का कारण धूम्रपान एवं ज्वलनशील पदार्थों को ले जाना बताया गया है।
छह दुर्घटनाएं शॉर्ट सर्किट एवं खराब रखरखाव और पांच दुर्घटनाएं मानवीय चूक के कारण बताईं गईं है। रिपोर्ट के अनुसार आग लगने की घटना के रूप में नहीं वर्गीकृत आग वाली 29 दुर्घटनाओं में 22 घटनायें शॉर्ट सर्किट एवं खराब रखरखाव, तीन घटनायें धूम्रपान एवं ज्वलनशील पदार्थों के कारण तथा एक घटना उपद्रवी तत्वों के कारण हुई है। तीन घटनाओं में कारण स्थापित नहीं हो पाए।
कैग ने रेलवे की इस बात के लिए आलोचना की है कि उसने वर्ष 2008 में सार्वजनिक इलाकों में धूम्रपान निषेध के नियम अधिसूचित होने के इतना समय बीतने के बावजूद रेलवे बोर्ड ने तदनुसार रेलवे अधिनियम 1989 के अनुच्छेद 167 में बदलाव नहीं किया ताकि ट्रेनों, रेलवे परिसरों में धूम्रपान करने वालों को कड़े दंड का प्रावधान हो सके।
कैग ने कहा है कि स्लीपर, साधारण अनारक्षित एवं सीटिंग कोचों में आग बुझाने वाले फायर एक्सटिंग्विशर नहीं लगाए गए हैं। जबकि नियमों में हर स्लीपर कोच में दो फायर एक्सटिंग्विशर होने अनिवार्य हैं। इसी प्रकार से पार्सल एवं सामान बुकिंग के नियमों में ज्वलनशील पदार्थों एवं प्रतिबंधित पदार्थों के परिवहन पर रोक की बात इंगित नहीं किए जाने की भी आलोचना की है। कैग ने सिफारिश की है कि कोचों, पार्सल वैनों एवं ब्रेकवैनों में आग रोकने के उपायों को सख्ती से लागू किया जाए और उनके उल्लंघन पर कड़े दंड का प्रावधान किया जाए। इसके साथ विभिन्न समितियों द्वारा संरक्षा के लिए सुझाए गए उपायों को क्रियान्वित किया जाए।
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