ग्रेजुएट लक्ष्मी है यहां की पहली महिला कुली, पिता की मौत के बाद चुना पेशा
रेलवे में आपने कई दफा सफर किया और इस दौरान आप सैकड़ों कुलियों से टकराए होंगे, लेकिन क्या कभी आपका वास्ता किसी महिला कुली से पड़ा? शायद बहुत कम ही ऐसा हुआ हो..
अजय खरे@ जबलपुर। आमतौर पर पुरुष वर्चस्व वाले पेशे में कोई महिला नजर आ जाये, तो चर्चा होना लाजमी है। रेलवे में आपने कई दफा सफर किया और इस दौरान आप सैकड़ों कुलियों से टकराए होंगे, लेकिन क्या कभी आपका वास्ता किसी महिला कुली से पड़ा? शायद बहुत कम ही ऐसा हुआ हो..आज हम आपको ऐसी ही एक महिला कुली की कहानी बता रहे हैं, जिसने ग्रेजुएट होने के बावजूद ‘कुली’ के काम को तवज्जो दी। लक्ष्मी की कहानी हमें ये भी बताती है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता ।
पश्चिम मध्य रेलवे जोन मुख्यालय के जबलपुर स्टेशन पर काम करने वाली लक्ष्मी यहां की पहली महिला कुली है। पुरुष कुलियों के बीच इस महिला कुली को यात्रियों का सामान ले जाते देख बाहरी लोगों को थोड़ा आश्चर्य होता है, लेकिन यहां के बाशिंदे लक्ष्मी को भली भांति पहचानते हैं।
रेलवे ने दिया बिल्ला नंबर 23
बैज नंबर 23 वाली यह महिला कुली पश्चिम मध्य रेलवे के जोन मुख्यालय के लिए इस मायने में भी बेहद खास है, क्योंकि जब रेलवे ने महिला कुलियों की भर्ती शुरू की तब लक्ष्मी वह पहली महिला थी जिसका आवेदन प्राप्त हुआ। रेलवे ने नियुक्ति पत्र देने के साथ ही लक्ष्मी को 23 नंबर का बैज प्रदान किया। बाद में संतरा भारती नाम की दूसरी कुली की नियुक्ति हुई पर उसे अपने पिता की जगह अनुकंपा नियुक्ति दी गई थी।
ग्रेजुएट है लक्ष्मी
ओमती निवासी लक्ष्मी ने माता गुजरी बाई कॉलेज जबलपुर से बीकॉम किया है। पिता के स्वर्गवास के बाद परिवार को सहारा देने व आत्मनिर्भर बनने के लिए उसने पुरुषों के एकाधिकार वाला यह काम चुना। लक्ष्मी का कहना- ‘मुझे इस काम में आत्म संतोष मिलता है, क्योंकि मैं ज्यादातर ऐसे यात्रियों का सामान ले जाने में मदद करती हूँ, जो अपना सामान स्वयं नहीं ढो सकते।’
फिजीकल एक्जाम पास करना पड़ा
लक्ष्मी ने जब कुली की नौकरी के लिए आवेदन दिया तो उसे भी पुरुष कुलियों की तरह फिजीकल एक्जाम पास करना पड़ा। जब उसने परीक्षा पास कर ली तो रेलवे अधिकारियों ने खुशी जाहिर करते हुए उसे नियुक्ति पत्र प्रदान किया। लक्ष्मी ने बताया कि उसे पुरुष कुलियों से कोई समस्या नहीं हुई न ही कभी किसी ने उसके इस काम को लेकर कोई टिप्पणी की।
कष्टप्रद है वजन ढोना
लक्ष्मी का कहना है कि 60 से 70 किलो का वजन ढोना आसान नहीं होता। भारी भरकम सामान लेकर प्लेटफार्म की सीढिय़ां चढऩा और फिर उतरना महिलाओं के लिए काफी कष्टप्रद होता है। लक्ष्मी ने बताया कि उसके साथ पढऩे वालीं जब कभी रेलवे पर उसे यह काम करते देखती हैं तो प्रसन्नता ही जाहिर करती हैं आखिर वह आत्मनिर्भर जो है। बीकॉम पास लक्ष्मी चाहती है कि रेलवे उसकी शैक्षणिक योग्यता को ध्यान में रखते हुए उसे ऑफिस वर्क का अवसर प्रदान करे।
लक्ष्मी की ये ख्वाहिश कब पूरी होती है, इसका तो अंदाजा नहीं लेकिन फिलवक्त लक्ष्मी अपने काम को जिस अंदाज में अंजाम देती है उसे देखकर हर कोई मुस्कुरा उठता है।