विकास वाजपेयी
कानपुर. कुछ दिनों पहले उड़ीसा की एक तस्वीर देखकर शायद आप अपने आंसू नहीं रोक पाए होंगे, जिसमें एक आदमी अपनी मृत पत्नी के शव को कंधे पर लादकर 10 किलोमीटर तक ले गया था। ऐसा ही वाकया कानपुर के हैलट अस्पताल में देखने को मिला, जहां एक पिता अपने बीमार बच्चे को अपने कंधे पर लादकर हैलट एमरजेंसी से बाल रोग विभाग तक ले गया। इतनी जद्दोजहद के बाद भी वह अपने बेटे को बचा नहीं सका।
यह दर्दनाक घटना उस प्रदेश की है, जिसने देश को नौ-नौ प्रधानमंत्री दिए हैं। केंद्र सरकार या प्रदेश सरकार चाहे जितनी चिकित्सा सुविधाओं के दावे करे पर हकीकत किसी से छिपी नहीं है। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में अक्सर ऐसी खबरें सुनने को मिल जाती हैं कि एक कोई बेबस इंसान धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ाता रहता है, पर कइयों का दिल नहीं पसीजता। सोमवार को हैलेट अस्पताल की यह घटना जिम्मेदारों को आईना दिखाने के लिए काफी है।
हे भगवान! तुम क्यों नहीं पसीजे?
कानपुर मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध हैलट अस्पताल को सरकार की तरफ से मेडिकल की सारी सुविधायें मिलती हैं लेकिन उसका फायदा आम लोगों को नहीं मिलता है। यहां तक कि अस्पताल में अगर आपको एक विभाग से दूसरे विभाग तक मरीज को लेकर जाना है तो स्ट्रेचर तक नहीं मिलेगा।
इसका जीता जागता उदहारण सोमवार को देखने को मिला। फजलगंज थाना क्षेत्र के रहने वाले सुनील का बेटे अंश (12) को बुखार से पीड़ित था, जिसे लेकर वह हैलट एमरजेंसी पहुंचे। लेकिन डॉक्टरों ने उसको भर्ती करने मना कर दिया। उसके लाख गिड़गिड़ाने के बावजूद धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा। उन्होंने उसे बाल रोग विभाग जाने को कह दिया।
अस्पताल से स्ट्रेचर तक नहीं मिला
हैलट एमरजेंसी से बाल रोग विभाग की दूरी 250 मीटर है। लेकिन अस्पताल की तरफ से उसको स्ट्रेचर तक नहीं दिया। जब बेटे की हालात ज्यादा बिगड़ी तो मजबूर पिता उसको अपने कंधे पर लादकर ही बाल रोग विभाग तक पैदल ही दौड़ पड़ा। लेकिन जब तक वह वहां पहुंचते, बेटा दम तोड़ चुका था। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा तो देखिए बच्चे की मौत के बाद भी उसे स्ट्रेचर नहीं मिला और मजबूर पिता उसे कंधों पर लादकर रोता हुआ निकल पड़ा। इस दर्दनाक दृश्य को जिसने भी देखा, उसके दिल में गरीबों के साथ होने का दावा करने वाले यूपी और केंद्र सरकार का चेहरा कौंध गया। लेकिन जिम्मेदारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
मर चुकी है संवेदना
अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आये दिन जिला प्रशासन व स्वास्थ विभाग के अधिकारी सरकारी अस्पतालों का जायजा लेने पहुंचते रहते हैं, उनको यह सब क्यों नहीं दिखाई पड़ता। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार की तरफ से सरकारी अस्पतालों में इलाज की बात तो कही जाती है, लेकिन इस घटना के बाद लगता है कि अब डॉक्टरों की सवेंदना मर चुकी है।
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