जबलपुर। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी पद्मा एकादशी कहलाती है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। मान्यता है, कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे। इस कारण से इसे जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। इस बार ये 13 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस एकादशी के दिन व्रत कर विष्णुजी की पूजा की जाती है।
पूजा
इस व्रत में धूप, दीप, नैवेद्य और पुष्प आदि से पूजा करने का विधान है। एक तिथि के व्रत में सात कुंभ स्थापित किए जाते हैं। सातों कुंभ में सात प्रकार के अलग-अलग धान्य भरे जाते है। इन सात अनाजों में गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर हैं। एकादशी से पूर्व की तिथि अर्थात दशमी के दिन इनमें से किसी धान्य का सेवन नहीं करना चाहिए। कुंभ के ऊपर विष्णुजी की मूर्ति रख पूजा की जाती है। इस व्रत को करने के बाद रात्रि में विष्णुजी का पाठ करना चाहिए। यह व्रत दशमी तिथि से होकर द्वादशी तिथि तक जाता है, इसलिए इसकी अवधि सामान्य व्रत की तुलना में कुछ लम्बी होती है। एकादशी के पूरे दिन व्रत कर द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घढ़ा ब्राह्मण को दान में दिया जाता है।
डोल ग्यारस
राजस्थान सहित कुछ स्थानों में जलझूलनी एकादशी को डोल ग्यारस एकादशी भी कहा जाता है। इस अवसर पर यहां भगवान गणेश और माता गौरी की पूजा व स्थापना की जाती है। मेलों का आयोजन किया जाता है। देवी-देवताओं को नदी-तालाब के किनारे ले जाकर पूजा की जाती है। संध्या समय में इन मूर्तियों को वापस लाया जाता है। अलग-अलग शोभायात्राएं निकाली जाती हैं, जिसमें भक्तजन भजन, कीर्तन, गीत गाते हुए प्रसन्न मुद्रा में खुशी मनाते हैं।
एकादशी का महत्व
कथा इस प्रकार है कि सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए। उनके राज्य में सुख-संपदा की कोई कमी नहीं थी। प्रजा सुख से रह रही थी, परंतु एक समय उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। प्रजा दु:ख से व्याकुल थी, तब महाराज भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और उनसे प्रजा के दु:ख दूर करने की प्रार्थना करते हैं। राजा भाद्रपद के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करते हैं। व्रत के प्रभाव से वर्षा होने लगती है और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। राज्य में पुन: खुशी छा जाती है। इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए। पद्मा एकादशी के दिन सामथ्र्य अनुसार दान करने से शुभफल की प्राप्ति होती है। जलझूलनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे भूमि दान करने और गोदान करने के पश्चात मिलने वाले पुण्यफलों से अधिक फलों की प्राप्ति होती है।
Home / MP Religion & Spirituality / रात्रि को करते हैं ‘विष्णु’ पाठ, सबसे लंबी होती है इस व्रत की अवधि