जशपुर का फरसाबहार, पत्थलगांव, बगीचा और कांसाबेल का इलाका भुरभुरी मिट्टी और गर्म आबोहवा और दीगर हालात के चलते जहरीले सांपों के लिए बेहद मुफीद हैं। यहां पाए जाने वाले जहरीले सांपों की वजह से हर साल सैकड़ों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। पूरे इलाके को नागलोक के नाम से जाना जाता है। जहरीले सांपों के डंसने की वजह से जशपुर जिले में वर्ष 2005 से लेकर मई 2017 तक कुल 425 लोगों की मौत हो चुकी है। सांप काटने से मरने वाले लोगों में सबसे अधिक संख्या जशपुर विकासखण्ड से है। पेश है अमानुल्ला मलिक की रिपोर्ट…
छत्तीसगढ़ के चंदखुरी में है विश्व का इकलौता कौसल्या मंदिर, माता की गोद में हैं रामलला वनांचल क्षेत्र जशपुर और उसके आसपास के इलाकों में करैंत और नाग जैसे बेहद जहरीले सांप पाए जाते हैं। इन सांपों की अधिकता की वजह से पूरे इलाके को नागलोक कहा जाता है। सबसे अधिक जहरीले सांप फरसाबहार और तपकरा क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। हालांकि सांपों के रेस्क्यू के लिए गठित की गई ग्रीन नेचर वेलफेयर सोसायटी के सदस्यों का कहना है कि जहरीले सांप पूरे जशपुर क्षेत्र में फैले हुए हैं। सर्पदंश की बढ़ती घटना को देखकर जिले के लगभग सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में एंटी स्नैक वेनम की सुविधा उपलब्ध तो है, फिर भी ग्रामीणों में झाडफ़ूंक का अंधविश्वास हावी है। झाडफ़ूंक के चक्कर में ही बीते सप्ताह एक महिला की जान जा चुकी है। अंधविश्वास का आलम यह है कि अगर सर्पदंश की वजह से किसी की मौत हो जाती है, तो गांव के बैगा और गुनिया तांबे के सिक्के और थाली-लोटे के जरिए मृतक की जान को वापस लाने का ढोंग करते रहते हैं।
Read more: बृजमोहन का एक और कारनामा, भूदान और सरकारी जमीन पर बनाया फॉर्म हाउस इलाके के एक सर्प विशेषज्ञ राहुल तिवारी का कहना है कि सरकार सर्पदंश से होने वाली मौतों पर मुआवजा तो बांट देती है लेकिन अंधविश्वास दूर करने और सांपों से बचाव के लिए बेहतर ढंग से पैसे खर्च नहीं करती। यदि सरकार जागरुकता पर खर्च करे, तो मौत का आंकड़ा घट सकता है। सांपों की अधिकता वाले क्षेत्रों में जिस तरह की नीति और तैयारी होनी चाहिए, वह नदारद है। सरकार ने भी सांपों के प्रति लोगों को जागरूक करने, प्रशिक्षित करने के लिए कुछ भी खास नहीं किया है। एक तरह से यहां लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।
डॉक्टर भी हो जाते हैं दिग्भ्रमित कुछ रंग-बिरंगे सांप हैं, जिन्हें जहरीला समझ लिया जाता है। जैसे – ताम्र अलंकृत सांप (कॉपर हेड), कुकरी (कॉमन कुकरी) इस तरह से और भी कुछ सांप हैं, जिन्हें जहरीले सांपों की श्रेणी में जानकारी के अभाव में गिन लिया जाता है। कैसर हुसैन ने बताया, दरअसल एक जैसे दिखने वाले सांपों को जहरीला समझ लेने से ही लोग दिग्भ्रमित हो रहें हैं। जब ऐसे बिना जहर के सांपों के काटे जाने के बाद झाडफ़ूंक कराया जाता है, तो पीडि़त बगैर किसी दवा के आसानी से बच जाते हैं, क्योंकि सांपों में जहर नहीं होने से किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती। ऐसे में, लोगों के भीतर यह अंधविश्वास हावी हो जाता है कि सर्पदंश का वह मरीज बैगा गुनिया के शरण में आने व झाडफ़ूंक से ही ठीक हुआ है।
फाइलों में दफन सर्प ज्ञान केन्द्र फरसाबहार विकासखण्ड के तपकरा इलाके में जहां सबसे ज्यादा जहरीले सांप पाए जाते हैं वहां सापों के जहर को जानने और शोध के उद्देश्य से कभी सर्प ज्ञान केन्द्र खोलने की बात उठती रही है तो कभी स्नेक पार्क। जिले में पदस्थ रहे अधिकारी समय-समय कई तरह के वादे और दावे करते रहे हैं। लेकिन, राज्य निर्माण के 16 सालों के बाद भी आज तक न तो सर्प ज्ञान केंद्र खुल पाया है और न ही स्नेक पार्क। इलाके के तपकरा क्षेत्र में वन विभाग ने एक भवन जरूर बनाया है, लेकिन इस भवन में भी सर्प और उसके दंश से होने वाले नुकसान को लेकर कोई कार्य किया गया हो ऐसा दिखाई नहीं देता। वन विभाग ने स्नेक पार्क बनाने के लिए एक प्रस्ताव भेजा था पर इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली।
108 और अस्पतालों में एंटी-स्नेक वेनम स्वास्थ्य विभाग ने हर सरकारी अस्पताल चाहे वह सिविल अस्पताल हो या प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र या मिनी पीएचसी में सर्पदंश से पीडि़त मरीजों के लिए एंटी-स्नेक वेनम उपलब्ध कराया है। यहां तक कि जिले में तैनात किए गए 108 संजीवनी एम्बुलेंस में भी एंटी-स्नेक वेनम पर्याप्त मात्रा में रहते हैं। एंटी स्नेक वेनम का उपयोग किस तरह से किया जाना है इसे लेकर कर्मचारियों प्रशिक्षित भी किया गया है, लेकिन मौतों का सिलसिला जारी है।