शारदीय नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के व्रत, पाठ और हवन द्वारा धन, बल, विद्या एवं बुद्धि की अधिष्ठाता देवी महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती की आराधना की जाती है। सप्तशती का पाठ धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष चारों पुरूषार्थों को प्रदान करता है।
दुर्गासप्तशती में शारदीय नवरात्र के महत्व के बारे में देवी कहती हैं-
शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी। तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वित:।।
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।नवरात्र में नवदुर्गा के रूप में देवी की नौ शक्तियों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवरात्र में निमित्त व्रत, पूजा-पाठ, हवन, बटुक कुमारिका पूजन आदि का विधान देवीभागवत में बताया गया है। दुर्गासप्तशती में कुल 700 मंत्र होने के कारण इसे सप्तशती कहा गया है।
ये भी पढ़ेः मंगलवार से नवरात्रा आरंभ, घट स्थापना के लिए ये हैं शुभ मुहूर्तग्रह दोष शांति के लिए करें मां के इन रूपों की पूजानौ दिनों तक देवी की आराधना, पूजा-व्रत करके न सिर्फ शक्ति संचय किया जाता है वरन् नवग्रहों से जनित दोषों का शमन भी इस अवधि में सुगमता से किया जा सकता है। जन्म कुण्डली में यदि सूर्य ग्रह कमजोर हो तो स्वास्थ्य लाभ के लिए शैल पुत्री की उपासना, चन्द्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कूष्मांडा देवी, मंगल ग्रह के लिए स्कंदमाता, व्यापार तथा अर्थव्यवस्था में वृद्धि व बुध की शांति हेतु कात्यायनी देवी, गुरू के लिए महागौरी, शुक्र के शुभत्व के लिए सिद्धिदात्री तथा शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कालरात्रि, राहु की शुभता के लिए ब्रह्मचारिणी व केतु के विपरीत प्रभाव को दूर करने के लिए चंद्रघंटा देवी की साधना करनी चाहिए। ग्रहोपचार व सभी तरह के अरिष्टों के शमन के लिए श्रद्धा व भक्ति पूर्वक दुर्गा पाठ क रना चाहिए।
ऐसे करें दुर्गा सप्तशती के पाठनवरात्र के प्रथम दिन घटस्थापना करें, ज्वारे बोएं व घी का दीपक जलाएं। सर्वप्रथम गणपति-अम्बिका का षोडशोपचार पूजन, कलश पूजा, पंच लोकपाल, दश दिक्पाल, गौर्यादि-षोडश मातृका, नवग्रह, अखण्डदीप पूजन आदि प्रतिदिन करें। इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों का पाठ करें। सप्तशती के विधिवत पाठ में शापोद्धार सहित षडंग विधि- कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य इन छ: अंगों सहित देवी का पाठ करना चाहिए। पाठ के आरम्भ और अंत में शापोद्धार मंत्र का 7 बार जप करें। आरम्भ में कवच, अर्गला, कीलक, रात्रिसूक्त तथा देव्य अथर्वशीर्ष के पाठ करें। न्यासादि के बाद 108 बार नवार्ण मंत्र के जप करके एक से तेरह अध्याय तक पाठ करें। पाठ समाप्ति के तुरन्त बाद पुन: 108 बार नवार्ण मंत्र के जप करके पाठ को संपुटित कर लें। इसके पश्चात् वेदोक्त देवीसूक्त, प्राधानिक, वैकृतिक व मूर्ति रहस्य, एवं सिद्धिकुंजिकास्तोत्र के पाठ करें। क्षमा प्रार्थना, आरती तथा पुष्पांजलि करें।
दुर्गा पाठ में रखें ये सावधानियांसप्तशती पुस्तक को किसी आधार पर रखकर ही पाठ करना चाहिए। मानसिक पाठ न करके मध्यम स्वर में बोलकर करना चाहिए। अध्यायों के अंत में आने वाले “इति”, “अध्याय:” एवं “वध:” शब्दों का प्रयोग वर्जित है। उदाहरण के तौर पर “इति श्री मार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये मधुकैटभवधो नाम प्रथमोअध्याय:।।” के स्थान पर “श्री मार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये ऊं तत्सत् सत्या: सन्तु यजमानस्य कामा:” अध्याय के अंत में बोलना चाहिए। दुर्गा पाठ को देवी के नवार्ण मंत्र “ऐं ह्नीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र के 108 बार पहले व अंत में जप करके ही करना चाहिए। नौ अक्षरों के उक्त नवार्ण मंत्र के जप में अन्य मंत्रों की तरह “ऊं” नहीं लगता है। अत: इसे प्रणव “ऊं” रहित ही जपना चाहिए।
बटुक-कुमारिका पूजननौ कन्याओं और एक बालक को निमंत्रित कर पूजन के दिन उनके आह्वान के लिए दाहिने हाथ में चावल व पुष्प लेकर “कर-कलित-कपाल: कुण्डली-दण्डपाणि: तरूण-तिमिरनील- व्यालयज्ञोपवीती। क्रतुसमय-सपर्याद् विघ्नविच्छेदहेतुर्जयति बटुकनाथ: सिद्धिद: साधकानाम्।” श्लोक पढ़कर “बं बटुकाय नम:” मंत्र से बटुक का और “मन्त्राक्षरमयीं देवीं मातृणां रूपधारिणीम् नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।। श्लोक और “कुमार्यै नम:” मंत्र से कन्याओं का आह्वान व पूजन करें। उनको मिष्ठान युक्त भोजन खिलाकर अपने अनुसार नवीन वस्त्राभूषणों से सज्जित करें। अन्त में आरती कर उनका चरण स्पर्श करें वमस्तक पर तिलक लगाकर अंकुरित जवारे व दक्षिणा दें। विदाई के समय उनसे अपने ऊपर चावल छिड़कवाकर आशीर्वाद प्राप्त करें। बटुक-कुमारिका पूजन से त्रैलोक्य पूजन का फल मिलता है।
वाराही तंत्र और रूद्रयामल तंत्र में सद्यफलदायी एक प्रयोग “सार्ध नवचण्डी” पाठ का विधान बताते हुए कहा गया है कि- जो इस पाठ को करता है वह भय से मुक्त होकर राज्य, श्री, सर्वविधि सम्पत्ति एवं सभी इच्छित कामनाओं को प्राप्त करता है। इस पाठ को करने से दु:साध्य रोगों के कष्ट से मुक्ति मिलती है। यह अनुष्ठान किसी भी पर्व के दिन शुभ मुहूर्त्त में 11 ब्राह्मणों द्वारा एक ही दिन में सम्पन्न किया जाता है। इनमें से 9 ब्राह्मण उक्त वर्णित विधि से दुर्गासप्तशती के पूर्ण पाठ, एक ब्राह्मण सप्तशती का अर्ध-पाठ और एक ब्राह्मण द्वारा षडंग रूद्राष्टाध्यायी का पाठ किया जाता है।
अर्धपाठ का क्रम इस प्रकार है- मधुकैटभ-नाश, महिषासुर-विनाश, शक्रादिस्तुति, देवीसूक्त, नारायणस्तुति, फलानुकीर्तन और वरप्रदान। अर्थात् दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय से प्रारम्भ करके चौथे अध्याय (शक्रादिस्तुति) में श्लोक संख्या 27 यानि “रक्ष सर्वत:” तक, फिर पंचम अध्याय में प्रारम्भ से श्लोक संख्या 82 “भक्तिविनम्रमूर्तिभि:” तक, फिर ग्यारहवें अध्याय में प्रारम्भ से श्लोक संख्या 35 यानि “वरदा भव” तक तथा अंत में 12वें और 13वें अध्याय का पूर्ण पाठ करें।
यह अर्धपाठ सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला कहा गया है। अर्धपाठ के बिना नौ पाठों का फल प्राप्त नहीं होता है। पाठ के पश्चात् हवन करें। इसमें सप्तशती के पूर्ण पाठ मंत्रों का हवन, श्रीसूक्त हवन तथा शिवमंत्र “रूद्र सूक्त” का हवन भी अपेक्षित है। तदन्तर ब्राह्मण भोजन तथा बटुक एवं कुमारिकाओं को भोजन करायें, दक्षिणा दें।