सुहागनगरी में समाजसेविका प्रतिभा उपाध्याय निरक्षरों को साक्षर बनाने का काम कर रहीं हैं। वह आस—पास के गरीब बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देकर उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने का काम कर रही हैं। दो बच्चों को शिक्षित बनाने वाली इस महिला के यहां अब करीब दो दर्जन सेे अधिक बच्चे निश्शुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। केवल शिक्षा ही नहीं बल्कि इनके द्वारा योग के प्रति भी शिविर में लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
ठा. बीरी सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बहादुर सिंह बताते हैं कि यूनेस्को ने सात नवंबर 1965 में इस दिवस को मनाने का फैसला लिया था। पहली बार आठ सितंबर 1966 को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में इसे मनाया गया। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये वयस्क शिक्षा और साक्षरता की दर को ध्यान दिलाने के लिये इस दिन को खासतौर पर मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि शिक्षा पर वैश्विक निगरानी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। जिसमें पाँच में से एक पुरुष और दो-तिहाई महिलाएँ अनपढ़ है। उनमें से कुछ के पास कम साक्षरता कौशल है। कुछ बच्चों की पहुँच आज भी स्कूलों से बाहर है और कुछ बच्चे स्कूलों में अनियमित रहते हैं। लगभग 58.6% की सबसे कम वयस्क साक्षरता दर दक्षिण और पश्चिम एशिया के नाम है।
विषय वस्तु में ये रहे थे शामिल
विश्व में शिक्षा को लेकर खास बिंदुओं को शामिल किया गया। इसमें वर्ष 2007 और 2008 में इसकी विषय वस्तु साक्षरता और स्वास्थ्य था। वर्ष 2009 और 2010 में यह साक्षरता और महिला सशक्तिकरण हो गया। वर्ष 2011 और 2012 में इसका विषय वस्तु साक्षरता और शांति था। साक्षरता इंसान के जीवन को आकार देने के साथ ही उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी बनाता है।
मानव विकास और समाज के लिये उनके अधिकारों को जानने और साक्षरता की ओर मानव चेतना को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। सफलता और जीने के लिये खाने की तरह ही साक्षरता भी महत्वपूर्णं है। गरीबी को मिटाना, बाल मृत्यु दर को कम करना, जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना, लैंगिक समानता को प्राप्त करना आदि को जड़ से उखाड़ना बहुत जरुरी है। साक्षरता में वो क्षमता है जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकता है। ये उत्सव लगातार शिक्षा को प्राप्त करने की ओर लोगों को बढ़ावा देने के लिये और परिवार, समाज तथा देश के लिये अपनी जिम्मेदारी को समझने के लिये मनाया जाता है।