आजमगढ़. यूपी अथवा आजमगढ़ को ही नहीं बल्कि पूरे देश को जातीय राजनीति बोने का श्रेय आजमगढ़ जनपद को भी जाता है। कारण कि पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने 20 दिसंबर 1978 को जब जब पिछड़ी जाति आयोग का गठन किया तो उसमें पूर्व मुख्यमंत्री राम नरेश यादव की भूमिका भी मानी जाती रही है। यहीं से जातीय धु्रवीकरण शुरू हुआ और इसका असर भी सबसे पहले आजमगढ़ में देखने को मिला जब बसपा के जनक कांशीराम और मायावती चुनाव हार गयी थी उस समय 1989 में रामकृष्ण यादव आजमगढ़ से बसपा के सांसद चुने गये थे। ऐसा इसलिए हुआ कि विरादरी के नाम पर यादवों का उनके पक्ष में धु्रवीकरण हुआ था। वर्ष 1993 में सपा के अस्तित्व में आने के बाद जातीय राजनीति को और बढ़ावा मिला आज स्थित यह है कि पूरा समाज जातिवाद से संक्रमित दिख रहा है। राजनीतिक दलों को इसी में अपना फायदा भी दिख रहा है।
समाज के जातीय आधार पर बटवारे की बात आती है तो जेहन में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह का नाम कौध जाता है। कारण कि 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने ही मंडल कमीशन लागू करने की घोषणा की थी। इसके बाद पूरे देश में बवाल हुआ। कितनों ने विरोध में मौत को गले लगा लिया लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इसकी नीव वर्ष 1978 में मोरारजी देसाई के समय ही पड़ गयी थी। इसके बाद से ही जाति का जहर समाज में फैलने लगा और लोग विभिन्न खेमों में बंट गये।
1978 में बना आयोग
तत्कालीन प्रधनमंत्री मोरार जी देसाई ने 20 दिसंबर 1980 को विंदेश्वरी प्रसाद की अध्यक्षता में छह सदस्सीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था जिसका कार्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की समीक्षा करनी थी। बाद में इसे मंडल कमीशन का नाम दिया गया। दिसंबर 1980 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को सौंपी थी। इसमें अन्य पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गयी थी। 1982 में रिपोर्ट सदन में पेश हुई।
गठन में यूपी की थी महत्वपूर्ण भूमिका
आजमगढ़ के रामनरेश यादव 23 जून 1977 से 15 फरवरी 1979 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। माना जाता है कि मोरार जी देसाई के करीबी होने के साथ ही पिछड़ों के आर्थिक और सामाजिक स्तर में सुधार के बड़े पक्षधर थे। पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन में राम नरेश यादव को महत्वपूर्ण भूमिका थी।
सबसे पहले आजमगढ़ पर पड़ा असर
मंडल कमीशन वर्ष 1991 में लागू हुआ लेकिन जाति का जहर पूर्वांचल खासतौर पर आजमगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में पहले ही फैल चुका था। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में इसका असर साफ देखने को मिला। बसपा ने जातिगत स्थित को देखते हुए रामकृष्ण यादव को प्रत्याशी बनाया और जातीय ध्रुवीकरण का परिणाम रहा कि यादव और दलित एक मंच पर खडे़ नजर आये और रामकृष्ण यादव सांसद चुन लिये गये। जबकि इस चुनाव में बसपा के जनक कहे जाने वाले कांशीराम भी चुनाव हार गये थे।
1993 के बाद बन गया नासूर
वर्ष 1993 में सपा अस्तित्व में आयी और सपा बसपा एक साथ मिलकर चुनाव लड़ी। इन्होंने जातिगत आधार पर न केवल टिकट दिया बल्कि यह बताने का प्रयास किया कि सपा यादव और बसपा दलित की सबसे बड़ी हितैषी है। जिसका असर भी देखने को मिला आजमगढ़ की दस की दस सीट इन्हीं दोनों दलों के खाते में मई। गेस्ट हाउस कांड के बाद वर्ष 1996 के चुनाव में बसपा ने तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार, परवल को भून कर खा जाओ जैसे नारे देकर इस जहर को नासूर बना दिया। उस समय तिलक का मतलब लोगों ने ब्राह्मण, तराजू का मतलब वैश्य और तलवार को मतलब क्षत्रिय से गलाया था। यहीं नहीं परवल का मतलब भी पंडित, राजपूत, वैश्य, लाला लगाया गया था। यह आग जब बिहार तक पहुंची तो लालू ने भूरा बाल साफ करो का नारा दिया।
Home / Aapki Rai / #KyaUPAzadHai यहां मंडल कमीशन से पहले ही फिजां में घुल गया था जातिवाद का जहर