#SpeakUP आर्थिक दशा सुधारने से अधिक समानता के लिए है आरक्षण
पत्रिका पोल में आरक्षण को लेकर अपनी राय जाहिर की मशहूर शू डिजायनर व जूता व्यवसाई देवकी नंदन सोन ने।
आगरा। भारतवर्ष में दलितों को जो आरक्षण दिया गया था, वो उनकी आर्थिक दशा सुधारने से अधिक उन्हें समानता दिलाने के लिए था। सीधे शब्दों में कहा जाए, तो विचारों का आरक्षण था। इस आरक्षण की आज भी जरूरत है। आरक्षण जिस उद्देश्य के साथ दिया गया था, आज भी उस उद्देश्य से दलित काफी पिछड़ा हुआ है। यह कहना है आगरा के मशहूर शू डिजाइनर व जूता व्यवसाई देवकी नंदन सोन का। उन्होंने कहा कि अभी आरक्षण समाप्त हुआ, तो व्यवस्थाएं फिर बिगड़ जाएंगी।
70 साल बाद भी नहीं मिले मानवीय अधिकार
देवकी नंदन सोन ने बताया कि दलितों को आरक्षण मानवीय अधिकारों को लेकर मिला था लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आजादी के 70 साल बाद भी न तो मानवीय अधिकारों का कोटा पूरा हुआ, न मानवीय अधिकार मिले। आज शहरी क्षेत्र में हालत फिर भी बहुत अच्छी है। यहां समाज में दलितों से भेदभाव नहीं है, लेकिन ग्रामीण अंचल में आज भी दलितों को उन्हीं परेशानियों से रूबरू होना पड़ रहा है, जो परेशानियां उनके सामने 70 साल पहले थीं।
तब तक रहेगा आरक्षण
देवकी नंदर सोन ने बताया कि जब तक जातिवाद हावी रहेगा, तब तक आरक्षण की जरूरत है। आज भी लोगों की सोेच में परिवर्तन नहीं हो पा रहा है। कुछ नेताओं द्वारा ये भड़काना शुरू कर दिया गया है, कि आरक्षण खत्म होना चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक गरीब और अमीर के बच्चों के बीच कुश्ती हो जाए, तो उनमें समानता कहां रही। गरीब का बच्चा सूखी रोटी खा रहा है, जबकि अमीर का बच्चा काजू बादाम खाकर अपनी ताकत बनता है।
इस आधार पर खत्म कर सकते हैं आरक्षण
देवकी नंदन सोन ने कहा कि आरक्षण खत्म कर दो, लेकिन उस समय जब सभी को शिक्षा का समान अधिकार मिल जाए। जिस स्कूल में अमीर का बच्चा पढ़ रहा है, उसी स्कूल में गरीब का बच्चा पढ़े। जो सुविधाएं अमीर के बच्चे को मिल रही हैं, वहीं सुविधाएं गरीब के बच्चों को भी मिलें। इसके बाद फिर प्रतियोगिता कराई जाए और इस प्रतियोगिता में कोई आरक्षण नहीं रखा जाए। यह व्यवस्था लागू होने के बाद जाति का कॉलम ही खत्म कर दिया जाए।
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