चैत्र नवरात्र 6 अप्रैल से शुरू होंगे। इसी दिन विक्रम संवत 2076 का शुभारंभ होगा। इस नए साल का नाम परिधावी संवत्सर रहेगा।
अगार मालवा•Mar 24, 2019 / 01:14 am•
Lalit Saxena
चैत्र नवरात्र 6 अप्रैल से शुरू होंगे। इसी दिन विक्रम संवत 2076 का शुभारंभ होगा। इस नए साल का नाम परिधावी संवत्सर रहेगा।
सुसनेर. चैत्र नवरात्र 6 अप्रैल से शुरू होंगे। इसी दिन विक्रम संवत 2076 का शुभारंभ होगा। इस नए साल का नाम परिधावी संवत्सर रहेगा। इस बार नवरात्र नौ दिन के होंगे। पिछले साल चैत्र नवरात्र 8 दिन के थे। तीन सर्वार्थ सिद्धि व एक रवि पुष्य योग भी बन रहा है। रवि पुष्य योग तंत्र-मंत्र और यंत्र साधना के लिए विशेष फलदायी होता है।
ज्योतिषाचार्य पं. बालाराम व्यास के अनुसार 6 अप्रैल को सूर्य व्यापिनी प्रतिपदा होने से नवरात्र व विक्रम वर्ष का प्रारंभ होगा। इसी दिन घटस्थापना कर मां भगवती की आराधना की जाएगी। इस दिन से नवरात्र 9 दिन के रहेंगे। दशमी एवं एकादशी 15 अप्रैल को रहेगी। नवरात्र 14 अप्रैल तक चलेंगे। 7, 9, 10 और 12 अप्रैल को सर्वार्थ सिद्धि योग बनेगा। यह बड़ा योग है। नवरात्र में पूरे चार दिन सर्वार्थ सिद्धि योग पहली बार बन रहा है। शीतला माता मंदिर के पुजारी पं. जगदीशानंद जोशी के अनुसार आश्विन नवरात्रि की तरह चैत्र नवरात्रि में भी मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। पहले दिन कलश स्थापना करके देवी का आह्वान किया जाता है और नौ दिनों तक उपवास रख मां की पूजा की जाती है। नौवें दिन कन्या पूजन करके व्रत का पारण किया जाता है।
कलश स्थापना समृद्धि का प्रतीक
पंडितों के मुताबिक चैत्र नवरात्र के पहले दिन घरों में कलश स्थापना की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि कलश को सुख-समृद्धि, वैभव व मंगल कार्यों का प्रतीक माना गया है। कलश स्थापना से पूर्व लोग नहा-धोकर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। तत्पश्चात मां दुर्गा की आराधना करते हुए कलश की स्थापना करते हैं और दीप तथा धूप जलाकर मां की पूजा करते हैं। कई भक्तों मां की अखंड ज्योत भी जलाते हैं।
परिधावी संवत्सर की खास बातें
परिधावी हिंदू धर्म में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में ४६वां है। इसके आने पर विश्व में अन्न काफी महंगा होता है। वर्षा मध्यम होती है। प्राकृतिक उपद्रव होते रहते हैं और प्रजा कई प्रकार के रोगों से पीडि़त रहती है। इस संवत्सर का स्वामी इंद्राग्नी को कहा गया है। इसमें जन्म लेने वाला शिशु विद्वान, सुशील, कला में कुशल, श्रेष्ठ बुद्धि वाला, राजमान्य, भ्रमणशील प्रवृत्ति व व्यापार में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला होगा।
ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरंभ चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से किया था। अत: नवसंवत का प्रारंभ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है।
हिंदू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरंभ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है।
संवत्सर 60 हैं। जब 60 संवत पूरे हो जाते हैं तो फिर पहले से संवत्सर का प्रारंभ हो जाता है।
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