Akshay Navami के दिन आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु वास करते हैं। इसी दिन मां लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक पर भगवान विष्णु व शिव जी की पूजा आंवले के रूप में की थी और इसी पेड़ के नीचे बैठकर भोजन ग्रहण किया था। दूसरी प्रचलित प्राचीन मान्यता के अनुसार, इसी अक्षय नवमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के वध से पहले तीन वनों की परिक्रमा की थी और इसी परम्परा का अनुसरण करते हुए अक्षय नवमी पर लाखों भक्त मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा भी करते हैं। सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी के आंसूओं से आंवले की उत्पत्ति हुई थी। वैदिक प्राचीन हिन्दू शास्त्रों में कहा जाता है कि जब पूरी पृथ्वी जलमग्न थी और इस पर जीवन नहीं था। तब ब्रह्माजी कमल पुष्प में बैठकर निराकार परब्रह्मा की तपस्या कर रहे थे। इस दौरान उनकी आंखों से ईश-प्रेम और अनुराग के आंसू टपकने लगे थे। ब्रह्माजी के इन्हीं आंसूओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ और इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि अक्षय नवमी या आंवला नवमी का पर्व 17 नवंबर, शनिवार के दिन मनाया जा रहा है। इस अक्षय नवमी पर्व के दिन महिलाएं आंवला के पेड़ की पूजा करती हैं और संतान प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घायु की प्रार्थना भी करती हैं। पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस अक्षय नवमी पर्व का पूजन सुख-समृद्धि और कई जन्मों तक समाप्त न होने वाले अक्षय पुण्य की कामना से किया जाता है। इस दिन ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार के साथ मिलकर आंवले के पेड़ का पूजन करती हैं और इसी पेड़ के नीचे अपने परिवार के साथ भोजन करती हैं।
पूजा के बाद पेड़ की परिक्रमा करें और इसके नीचे बैठक पूरा परिवार प्रसाद ग्रहण करें।
पूजन में अर्पित की गई सामग्रियां किसी ब्राह्मण को दान करें। आंवला को आयु और आरोग्यवर्धक माना जाता है, इसलिए इस दिन किसी न किसी रूप में आंवले का सेवन अवश्य करें।