ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि कहा जाता है कि कड़वा बोलने वाला व्यक्ति दिल का अच्छा होता है और मीठा बोलने वाला खतरनाक होता है। ये बात कौए पर पूरी तरह साबित करते हैं। कोयल मीठा बोलती है, लेकिन जब वो अंडे देती है तो अपने अंडों को तुरंत छोड़ जाती है यानी वो अपने बच्चों की भी सगी नहीं होती, वहीं कौआ कर्कश आवाज में बोलता है, इसलिए उसे कोई पसंद नहीं करता। लेकिन कर्कश आवाज वाला कौआ ही कोयल के बच्चों को पालता है।
कौए को ईश्वर ने प्राकृतिक सफाई कर्मचारी बनाया है। जहां कहीं भी ज्यादा कीड़े मकौड़े आदि होते हैं तो कौआ उन्हें खाकर उस स्थान को साफ कर देता है। वास्तव में गौरेया की तरह कौए का संरक्षण किया जाना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनियों ने ऐसे तरीके बनाए थे कि किसी भी जीव जंतु को तुच्छ मानकर उनकी अवहेलना न की जाए। इसलिए उनकी महत्ता को किसी न किसी चीज से जोड़ दिया था। जिस तरह सावन में सर्प को पूज्यनीय माना जाता है, उसी तरह पितृ पक्ष में कौओं को पूर्वजों की संज्ञा देकर उन्हें पूज्यनीय बनाया गया है।
चूंकि कौए को पूर्वजों की संज्ञा दी गई है, ऐसे में ये धारणा है कि कौआ यदि सिर पर बैठ जाए तो उस व्यक्ति की मृत्यु शीघ्र हो जाती है क्योंकि वो इस बात का संकेत है कि पूर्वज उसे अपने पास बुलाना चाहते हैं। लेकिन ये भी सिर्फ मान्यताभर ही है। कौए को भी सामान्य पक्षी की तरह ही लेना चाहिए।
कुछ लोगों का मानना है कि यदि कौआ घर की छत पर मरा मिले तो कुछ अशुभ होता है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। हो सकता है कि वो उसकी प्राकृतिक मृत्यु हो या उसे किसी जानवर ने मार दिया हो। ऐसे में शुभ अशुभ की धारणा को जोड़ना गलत है। हां कौए को खुद न मारें।