देवोत्थान एकादशी के दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान क्षीरसागर में चार माह शयन के बाद जागते हैं। इस दिन से ही मंगल कार्य आदि पुन: शुरू होते हैं। माना जाता है कि इस दिन उपवास रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही हजार अश्वमेध यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है। इसे बड़ी एकादशी और प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार मुर नामक दैत्य ने बहुत आतंक मचा रखा था यहां तक कि स्वयं विष्णु ने भी उसके साथ युद्ध किया लेकिन लड़ते लड़ते उन्हें नींद आने लगी और युद्ध किसी नतीजे पर नहीं पंहुचा, जब विष्णु शयन के लिये चले गये तो मुर ने मौके का फायदा उठाना चाहा लेकिन भगवान विष्णु से ही एक देवी प्रकट हुई और उन्होंने मुर के साथ युद्ध आरंभ कर दिया। इस युद्ध में मुर मूर्छित हो गया जिसके पश्चात उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। वह तिथि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि थी। मान्यता है कि भगवान विष्णु से एकादशी ने वरदान मांगा था कि जो भी एकादशी का व्रत करेगा उसका कल्याण होगा, मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से प्रत्येक मास की एकादशी व्रत की परंपरा आरंभ हुई।
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन प्रातः काल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए। एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए। इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए। रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए। इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास।
एक बार भगवान विष्णु से लक्ष्मीजी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान! आप दिन-रात जागते हैं, लेकिन एक बार सोते हैं तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए। आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा। लक्ष्मीजी की बात भगवान को उचित लगी। उन्होंने कहा कि तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता इसलिए आज से मैं हर वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करूंगा।