बचाव के तरीके बताए आगरा आॅब्सटेट्रिकल एंड गायनेकोलाॅजिकल सोसायटी की ओर से संजय प्लेस स्थित होटल होली-डे इन में महिलाओं और लड़कियों में एंड्रोमेट्रिओसिस, पीसीओएस और फाइब्राॅयड्स जैसी समस्याओं को एक तकनीकी कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें महिलाओं, किशोरियों को इन बीमारियों के चलते होने वाली परेशानियों, इनसे बचाव, इनके लक्षणों को पहचानने और आधुनिक तकनीकों से इनके इलाज को लेकर चर्चा की गई।
ऐसे किया जाता है इलाज मुख्य वक्ता कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, मणिपाल से आए डॉ. प्रताप कुमार ने बताया कि उक्त समस्याओं का इलाज दो तरह से हो सकता है। एक मेडिसिन और दूसरा सर्जरी। यह रोग और मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है कि कब कौन सा इलाज किया जाना है। मेडिसिन ट्रीटमेंट के दौरान हार्मोनल काॅन्ट्रासेप्टिक का उपयोग किया जाता है। जिससे कि पीरियड्स छह माह तक नहीं होते हैं। यह दवाई आम तौर पर बर्थ कंट्रोल के लिए दी जाती है, लेकिन इस मामले में इसे छह महीने तक दी जाती है। इलाज शुरूआत में ही कारगर है। दूसरा गोनैडोट्रोपिन रिलीजिंग हार्मोन, इसे इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है। इससे शरीर में फीमेल हार्मोन की कमी आती है और पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं। इससे एंडोमेट्रियम टिश्यू छोटे होने लगते हैं और धीरे धीरे खत्म हो जाते हैं। इसमें मरीज की स्थिति मेनोपाॅज की हो जाती है। छह माह से साल भर बाद इंजेक्शन को बंद कर दिया जाता है। तीन चार माह बाद पीरियड्स फिर से शुरू हो जाते हैं और महिला फिर से गर्भधारण की स्थिति में आ जाती है। डॉ. प्रताप ने इन समस्याओं के इलाज पर आधुनिक दवाओं, उनके इस्तेमाल और असर के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
झिझकें नहीं, इलाज कराएं एओजीएस के अध्यक्ष डॉ. अनुपम गुप्ता ने कहा कि 25 से 30 साल की उम्र में पेट दर्द और गर्भधारण न कर पाने का सबसे मुख्य कारण एंडोमेट्रिओसिस ही है। वहीं पीसीओएस महिलाओं और लड़कियों के लिए शर्म व झिझक की वजह बन रहा है, क्योंकि इसका असर चेहरे और शरीर पर नजर आने लगता है। वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. नरेंद्र मल्होत्रा ने बताया कि वर्तमान में एंडोमेट्रिओसिस और पीसीओएस कितनी बड़ी समस्या है और यह महिलाओं के लिए कितनी तकलीफदेह बन चुकी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगभग 25 प्रतिशत महिलाएं एंडोमेट्रिओसिस से तो इतनी ही लड़कियां शादी से पहले ही पीसीओएस से पीड़ित हैं। अगर समय पर ध्यान न दिया जाए तो यह खतरनाक बन जाती हैं। दवाओं के बाद दूसरी और तीसरी स्टेज पर सर्जरी ही कारगर इलाज होता है।
मरीजों तो मिलेगा लाभ कार्यशाला की प्रबन्ध व्यवस्था कर रहीं डॉ. नेहा अग्रवाल, सचिव डॉ. शिखा सिंह, डॉ. अनु पाठक और डॉ. नीलम सिंह ने महत्वपूर्ण जानकारी दी। कहा कि यह कार्यशाला और एकेडमिक मीट चिकित्सकों के आपसी ज्ञानवर्धन के लिए बहुत खास है। अप्रत्यक्ष रूप से इसका लाभ मरीजों तक ही पहुंचेगा। चेयरपर्सन प्रो. मुकेश चंद्रा, डॉ. सुधा बंसल, डॉ. आरती गुप्ता शर्मा और डॉ. सविता त्यागी ने अपने अनुभव साझा किए।
इस दौरान इन सभी समस्याओं को लेकर पैनल डिस्कशन हुआ। वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा, डॉ. संतोष सिंघल, डॉ. मधु राजपाल, डॉ. रत्ना शर्मा, डॉ. रजनी पचौरी, डॉ. संध्या जैन, डॉ. गायत्री गुप्ता ने मासिक अनियमितता, एंडोमेट्रिओसिस, पीसीओएस, फाइब्राॅयड्स, बांझपन, पेल्विक एरिया में सूजन, डिप्रेशन, स्ट्रेस या तनाव, फाइब्रोमाइलगिया समेत तमाम बीमारियों और उनके समाधान तक पहुंचने की कोशिश की। अलग-अलग टॉपिक पर सभी ने अपनी राय रखी और नतीजे तक पहुंचने की कोशिश की। पीसीओएस, एंडोमेट्रिओसिस और फाइब्राॅयड्स पर तीन चैप्टर तैयार किए गए थे, जिनके आधार पर डॉ. प्रताप कुमार ने पैनलिस्ट्स से सवाल पूछे और जवाब मिले।