राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत डिलीवरी प्वाइंट यानि जिला अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर एक डॉक्टर और स्टाफ नर्स को जन्मजात रोगों की पहचान के लिए प्रशिक्षित किया गया है। प्रसव के समय जब ऐसे बच्चे की पहचान होती है तो तत्काल स्टाफ के लोग राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम को सूचित करते हैं।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल डॉ. आर के अग्निहोत्री और डीईआईसी मैनेजर रमाकान्त शर्मा ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान महिलाएं अपने खान-पान पर उचित ध्यान नहीं देतीं। इसके चलते इस तरह के जन्मजात रोग बच्चों को अपनी चपेट में ले लेते हैं। जिले में प्रत्येक वर्ष जन्म लेने वाले 4 से 5 बच्चे इस बीमारी से ग्रसित मिलते हैं।
बच्चे के माता पिता बोले
बच्चे के पिता शशि कुमार ने बताया कि बच्चे के जन्म लेते ही उसकी पीठ पर इतना बड़ा फोड़ा देखकर हम लोगों के होश ही उड़ गये। सीएचसी के डाक्टरों ने भी जवाब दे दिया। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। शशि बताते है कि तभी राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम अस्पताल पहुंची और बच्चे को हालचाल पूछा। उसे तत्काल शहर के एक हॉस्पिटल में भर्ती कराने के लिए कहा। बच्चे को लेकर अस्पताल पहुंचे, जहां डाक्टरों ने निःशुल्क उसका पूरा इलाज किया। आज बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है।