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आगरा

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव परिणाम पर लगी निगाहें

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव का परिणाम जानने के लिए आगरा वाले भी बेताब हैं।

आगराMar 14, 2018 / 09:53 am

Bhanu Pratap

चुनाव चिह्न

चुनाव चिह्न

आगरा। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के लिए हुए मतदान की गणना शुरू हो गई है। पूरे उत्तर प्रदेश की तरह आगरा वालों की निगाहें भी चुनाव परिणाम पर लगी हुई हैं। सब जानना चाह रहे हैं कि आखिर परिणाम क्या आने वाला है। राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले पल-पल का हाल जानने को बेताब है।
राजनीतिक विश्लेषक का कथन

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. केएस राना का कहना है कि चुनाव परिणाम के बारे में अभी कोई निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं होगा। इसका कारण यह है कि मतदान प्रतिशत कम हुआ है। अब तक जो चुनावी रुझान मिले हैं, उससे लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी में कड़ा मुकाबला है। अगर बहुजन समाज पार्टी ने अपना पूरा वोट समाजवादी पार्टी को ट्रांसफर कर दिया है तो मुकबला रोचक हो जाएगा। यह चुनाव परिणाम यह भी सिद्ध कर देगा कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक होकर भारतीय जनता पार्टी को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। उपचुनाव का परिणाम वैसे भी कोई खास मायने नहीं रखता है। कुछ भी हो, चुनाव परिणाम से उत्तर प्रदेश सरकार की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आनी है।
क्या कहना भाजपा ने

भारतीय जनता पार्टी के महानगर अध्यक्ष विजय शिवहरे का कहना है कि गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा चुनाव में पार्टी जीतेगी। हालांकि भाजपा को हराने के लिए उपचुनाव में सांप-छछूंदर एक हो गए हैं, लेकिन इससे कोई फरक्क नहीं पड़ने वाला नहीं है। जातिवादी और विघटनकारी तत्वों के खिलाफ पूरे देश की जनता एक है। पहली बार राष्ट्रवादी शक्तियां एक हुई हैं। इसकी प्रतिध्वनि भी यहां सुनाई देगी। फूलपर लोकसभा सीट से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सांसद थे। इस तरह गोरखपुर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सांसद थे। उनके इस्तीफे के कारण दोनों सीटें खाली हुई हैं। दोनों सीटों को जीतना भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ी बात है।
क्या कहा सपा ने

समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष राम सहाय यादव का कहना है कि हम चुनाव परिणाम पर निगाह रखे हुए हैं। पहले राउंड से ही भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर मिल रही है। इससे साफ है कि भारतीय जनता पार्टी के मंसूबे ध्वस्त हो सकते हैं। पिछड़े और दलित एक हैं, जो सबसे बड़ी शक्ति है। यह भी स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक उपेक्षा पिछड़ों और दलितों की हो रही है। उपचुनाव में इसका बदला लिया जा रहा है।

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