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कहां है सुल्तान पुर लोधी
पंजाब राज्य के कपूरथला जिले में सुल्तानपुर लोधी नामक स्थान है। यहां सिख धर्म के पहले गुरु नानकदेव महाराज ने अपने जीवन के 14 साल गुजारे। वे यहां बेर के पेड़ के नीचे ध्यान लगाते थे। यहीं उनका दैवीय शक्तियों से साक्षात्कार हुआ। वह बेर का पेड़ आज भी हरा-भरा है और इस पर बेर लगते हैं। यह भी किसी चमत्कार से कम नही है। सुल्तानपुर लोधी शहर से ही गुरु नानक देव ने विश्व कल्याण के लिए 1499 ईसवी में पांच उदासियों (यात्राओं) की शुरुआत की थी।
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मानवता का संदेश
ज्ञानी रंजीत सिंह गौहर ने बताया कि जिस प्रकार पगड़ी का रंग अलग-अलग होता लेकिन पहचान पगड़ी से होती है, उसी प्रकार सिक्ख समाज में विभिन्न सम्प्रदाय के व्यक्ति होने के बाद भी उनकी पहचान गुरु नानक देव जी के सिक्ख से होती है। जिस प्रकार गुरु नानक देव जी अपनी चारों उदासियों में मंदिर भी गए, मस्जिद भी गए। उन्होंने हर जगह मानवता का संदेश दिया। उसी प्रकार हर सिक्ख को उनसे सीख लेने की आवश्यकता है।
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संत बाबा साधु सिंह की याद
साबका जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब ज्ञानी गुरबचन सिंह ने संत बाबा साधु सिंह मोनी जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जब हम नगर कीर्तन लेकर आगरा से गुजरते थे, तब संत बाबा साधु सिंह मोनी स्वयं अपने हाथ से लंगर छकाते थे। इससे पूर्व जालंधर से पधारे भाई हरजोत सिंह जख्मी ने
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज 31 रागों में कीर्तन किया। दिल्ली से पधारे भाई प्रेम सिंह बंधु ने गुरु नानक देव जी की वाणी का गायन कर संगत को निहाल कर दिया।
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पंजाब और महाराष्ट्र से आई संगत
इस अवसर पर मौजूदा मुखी संत बाबा प्रीतम सिंह जी को हजूर साहिब लंगर साहिब से आए डॉ बाबा राजेन्द्र सिंह जी ने दस्तर सजा कर देश कौम की सेवा करने के लिए महाराज के आगे अरदास की। स्त्री सिंह सभा की बीबी रानी सिंह एवं गुरमीत गिल ने गुरबाणी का गायन किया। इस बार गुरमत समागम में तराई के अलावा पंजाब, महाराष्ट्र एवम् आगरा के आस पास के शहरों की संगत दर्शन करने पहुंची। सुबह गुरुद्वारा मंजी साहिब पर 65 अभिलखियों ने अमृत पान किया। पांच प्यारे सिंह साहिब दिल्ली सिक्ख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से पधारे।
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