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आगरा

ये है सुखी जीवन का मूल मंत्र

सहनशीलता का यह महामंत्र ही हमारे बीच अब तक एकता का धागा बनकर हमें पिरोए हुए है। इस महामंत्र को जितनी बार दोहराया जाए, कम ही है।

आगराJul 02, 2018 / 08:25 am

Bhanu Pratap

tolerance

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जापान के सम्राट यामातो का एक राज्यमंत्री था- ओ चो सान। उसका परिवार सौहार्द्र के लिए बड़ा प्रसिद्ध था। यद्यपि उसका परिवार बड़ा विशाल था। कहते हैं, उसमें लगभग एक हजार सदस्य थे, पर उनके बीच एकता का अटूट संबंध बना हुआ था। उनमें द्वेष-कलह लेशमात्र भी नहीं था।
ओ चो सान के परिवार के मेल-जोल की बात सम्राट यामातो के कानों तक भी पहुंची। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है। इसलिए सत्यता की जांच करने के लिए एक दिन वे स्वयं उस वृद्ध मंत्री के घर तक जा पहुंचे। स्वागत-सत्कार की साधारण रस्में समाप्त हो जाने के बाद उन्होंने कहा, ‘महाशय! मैंने आपके परिवार की एकता और मिलनसारिता की कई कहानियां लोगों की जुबानी सुनी हैं। क्या आप बतलाएंगे कि एक हजार से भी अधिक व्यक्तियों वाले आपके परिवार में यह सौहार्द्र और स्नेह-संबंध किस तरह बना हुआ है?’

ओ चो सान वृद्धावस्था के कारण अधिक देर तक बातें नहीं कर सकते थे। अतः उन्होंने अपने पौत्र को संकेत से कलम, दवात और कागज लाने के लिए कहा। उन चीजों के आ जाने पर उसने अपने कांपते हाथों से कोई सौ शब्द लिखकर वह कागज सम्राट यामातो की ओर बढ़ा दिया। सम्राट ने उत्सुकतावश कागज पर नजर डाली, तो वे चकित रह गए।

कागज में एक ही शब्द को सौ बार लिखा गया था। शब्द था- सहनशीलता। इस एक शब्द को बार-बार लिखने का मतलब समझने की कोशिश करते सम्राट की उलझन दूर की ओ चो सान की कांपती हुई आवाज ने, ‘महाराज! मेरे परिवार के सौहार्द्र का रहस्य बस इसी एक शब्द में निहित है। सहनशीलता का यह महामंत्र ही हमारे बीच अब तक एकता का धागा बनकर हमें पिरोए हुए है। इस महामंत्र को जितनी बार दोहराया जाए, कम ही है।’ सम्राट को अब सुखी जीवन का मूल मंत्र मालूम हो चुका था।

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