यह भी पढ़ें हमें सबसे अच्छी सीख देती है तीन मित्रों की ये कहानी यह सुनकर मेहता जी मन ही मन मुस्कुराए और फिर कुछ सोचते हुए उन्होंने पचास-पचास के नोटों की दो गड्डियां समित सदस्यों के सामने रख दीं। समिति के कोषाध्यक्ष ने नोट गिने। उसने एक बार नहीं, कई बार नोट गिने, पर हर बार वे 9900 ही निकले।
यह भी पढ़ें कार्य प्रारंभ करने का सही समय कोषाध्यक्ष ने कहा- मेहता जी, पूरे दस हजार नहीं हैं। एक सौ का नोट और दे दीजिए, ताकि आपके नाम की पटटी…। मेहताजी बीच में बोल पड़े, भाई इसीलिए तो सौ रुपये कम दिए हैं। मैं यह नहीं चहता कि मेरे द्वारा दिए गए दान का प्रचार हो। यदि प्रचार किया गया तो क्या निर्धन व्यक्ति कुंठित नहीं होंगे? उनमें दान के प्रति प्रेरणा कैसे जागेगी? वे क्यों दान करेंगे? इसी तरह यदि दान के बदले धनी व्यक्तियों का प्रचार किया गया, तो ऐसे दान का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। यह सुनकर समिति के सदस्यों के सिर श्रद्धा से मेहताजी के सामने झुक गए।
यह भी पढ़ें ऐसा अद्भुत वचन जो वेद, पुराण, उपनिषद में भी नहीं सीख देने वाला और है, देता है दिन रैन, लोग भरम मो पै करें, ताते नीचे नैन। अहम भावन पीछे हट तू, विनम्रता का बढ़ता वास,
सहनशीलता होती गहरी, बढ़ जाता आत्मविश्वास। यह भी पढ़ें सफलता का वह मंत्र जो रामकृष्ण परमहंस ने नरेन्द्र को बताया यह भी पढ़ें डॉ. राजीव जैन बता रहे हैं इस्लाम में सद्भावना का संदेश यह भी पढ़ें प्रतिशोध की आग में जलने वालों को बड़ी सीख देती है ये कहानी
प्रस्तुतिः सतीश चन्द्र अग्रवाल आनंद वृंदावन, संजय प्लेस, आगरा