खरमास में सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है और मकर संक्रांति तक इसी स्थिति में रहता है। मान्यता है कि सूर्य जब धनु राशि में विद्यमान होता है तो इस दौरान मांगलिक कार्य शुभ नहीं माने जाते। इस दौरान सूर्य मलीन हो जाता है। कमजोर हो जाता है। चूंकि विवाह के लिए सूर्य एक महत्वपूर्ण कारक ग्रह है इसलिए धनुर्मास के दौरान विवाह पर रोक रहेगी। हिंदू पंचांग के अनुसार यह समय सौर पौष मास का होता है जिसे खरमास, मलमास और पौष मास आदि नामों से जाना जाता है। उत्तरी भारत में खरमास की विशेष मान्यता है।
खरमास को लेकर एक कथा प्रचलित है। कथानुसार भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं। उन्हें कहीं पर भी रुकने की इज़ाजत नहीं है। मान्यता है कि उनके रुकते ही जन-जीवन भी ठहर जाएगा। लेकिन जो घोड़े उनके रथ में जुड़े होते हैं वे लगातार चलने व विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं। उनकी इस दयनीय दशा को देखकर एक बार सूर्यदेव का मन भी द्रवित हो गया। भगवान सूर्यदेव उन्हें एक तालाब के किनारे ले गये, लेकिन उन्हें तभी यह भी आभास हुआ कि अगर रथ रुका तो अनर्थ हो जाएगा। लेकिन घोड़ों का सौभाग्य कहिए कि तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे। भगवान सूर्यदेव ने घोड़ों को पानी पीने व विश्राम देने के लिए छोड़ दिया और खर यानी गधों को अपने रथ में जोड़ लिया। अब घोड़ा घोड़ा होता है , लिहाजा गधों को रथ खींचने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है और रथ की गति धीमी हो जाती है। किसी तरह सूर्यदेव इस दौरान एक मास का चक्र पूरा करते हैं। तब तक घोड़ों को भी विश्राम मिल चुका होता है। इस तरह यह क्रम चलता रहता है और हर सौर वर्ष में एक सौर मास खरमास कहलाता है।