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इस बड़ी वजह से बोला जाता है हर मंत्र के बाद ‘स्वाहा’ यहां पढ़ें पूरी कहानी

locationआगराPublished: Mar 12, 2019 12:38:46 pm

जानिए क्यों हवन के समय हर मंत्र के बाद स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री, अर्घ या भोग भगवान को करते हैं अर्पित

स्वाहा का अर्थ है – सही रीति से पहुंचाना। दूसरे शब्दों में कहें तो जरूरी भौगिक पदार्थ को उसके प्रिय तक।हवन या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री, अर्घ या भोग भगवान को अर्पित करते हैं।
दूसरे शब्दों में कहे तो जरूरी भौगिक पदार्थ को उसके प्रिय तक। दरअसल कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हवन का ग्रहण देवता न कर लें। लेकिन, देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए।
श्रीमद्भागवत तथा शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित वर्णन आए हैं। इसके अलावा ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्ता पर अनेक सूक्तों की रचनाएं हुई हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। इनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था। अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से यही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है। वहीं, दूसरी पौराणिक कथा के मुताबिक अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए।

प्रस्तुति
हरिहर पुरी
मठ प्रशासक
श्रीमनकामेश्वर मंदिर

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