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1988 में आगरा के पैरा ट्रुपर्स ने मालदीव को बचाया था, पढ़िए रोमांचक कहानी

ब्रिगेडियर सुभाष जोशी ने बताया- 6पैरा यूनिट की दो कंपनियों ने किया था ऑपरेशन कैक्टस, माले में एक साल रहे

आगराFeb 10, 2018 / 10:35 am

अभिषेक सक्सेना

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आगरा। समुद्री नजारों के लिए विश्वविख्यात मालदीव में इन दिनों सत्ता के लिए संघर्ष जारी है। बिलकुल नवम्बर, 1988 जैसा संकट है। इस बात को 30 साल हो गए है। तब राष्ट्रपति अब्दुल गयूम के खिलाफ विद्रोह हो गया था। तब भारत के प्रधाननमंत्री थे राजीव गांधी। उनके हस्तक्षेप के बाद भारतीय सेना ने मालदीव को बचाया था। विद्रोही भाग खड़े हुए थे। भारतीय सेना की आगरा स्थित 6पैरा यूनिट ने इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। यह ऐसी रोमांचक कहानी है, जिसे जानकर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। इस अभियान ने यह भी सिद्ध किया कि भारतीय सेना दुनिया में कहीं भी कुछ भी करने में सक्षम है।

दो कम्पनी तैयार कराईं
आगरा स्थित 6पैरा यूनिट के ब्रिगेडियर सुभाष जोशी (तब कर्नल थे) ने पत्रिका को बताया- मुझे 10 बजे ब्रिगेडियर फारुक बुल बलसारा ने सूचना दी कि पैरा ट्रुपर्स को तैयार रखो। मैं कमांड में था। मैंने रेडियो संदेश के माध्यम से तैयारी का निर्देश दिया। मुझे यह बताया गया था कि सैनिकों को जल्दी जम्प कराना है, लेकिन दुश्मन की क्या स्थिति है, कितने लोग हैं, कैसे हथियार हैं, कुछ भी पता नहीं था। मुझसे कहा था कि एक कम्पनी जाएगी, लेकिन मैंने दो कंपनी जाने के लिए तैयार कराईं। मैंने एक कंपनी बुला ली और दूसरी को तैयार रहने को कहा। मेरा अनुमान सही निकला। 12.30 बजे मुझसे कहा गया कि दो कम्पनी जाएंगी। फोन पर दूसरी कंपनी को भी प्रस्थान का आदेश दिया गया। तीसरी कंपनी की भी तैयारी की गई।

हवाई जहाज में ही हथियार दिए
ब्रिगेडियर सुभाष जोशी ने बताया कि हमने पूरी तैयारी कर ली थी। आदेश आय़ा कि खेरिया हवाई अड्डे से 3.30 बजे प्रस्थान करना है। मैंने कम्पनी को सामान्य अभ्यास कारया। हमें माले के एयरपोर्ट पर पहुंचना था। वहां जम्प का तरीका अलग होता है। मालदीव में भारत के उच्चायुक्त एके बनर्जी भी आ गए। उनसे ब्रिडियर बलसारा ने कुछ बातचीत की। एक हवाई अड्डे के मानचित्र पर चर्चा चल रही थी। हमें ऐसी जगह पर जाना था, जिसके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते थे। हमसे कहा गया कि दो-तीन दिन वहीं पर रहना होगा। इसलिए समान लेकर चलें। हमने तम्बू भी साथ में ले लिया। हमें आशंका था कि जम्प कराने पर हमारे सैनिक समुद्र में जा सकते हैं। जम्प के लिए सूखा स्थान चाहिए। फिर हमने कहा कि वहां जम्प नहीं, लैंडिंग हो सकती है। अंततः लैंडिग की बात तय हुई। हमारी कंपनी आगरा से शाम को छह बजे रवाना हुई। यह तय हुआ कि रात्रि को 10 बजे लैडिंग करेंगे। हवाई जहाज में ही जवानों को ब्रीफिंग की गई। हथियार भी वहीं पर दिए गए। हमने ऐसे हवाई अड्डे पर लैंडिंग की, जिसका रनवे एयरक्राफ्ट कैरियर जैसा था। यहां से मालदीव की राजधानी माले के हवाई अड्डे तक जाने के लिए नाव चाहिए थी। हवाई जहाज की नाव से सैनिकों को एक रिसोर्ट में भेजा। वहां से 10-12 नाव लीं।
जहाज से बंधक मुक्त कराए
उन्होंने बताया- हमारे सैनिक नाव से माले की ओर जा रहे थे। रात्रि 12 बजे के आसपास रास्ते में समुद्री जहाज जा रहा था। हमें आशंका हुई कि यह विद्रोहियों का हो सकता है, जो बाद में सच साबित हुई। विद्रोहियों ने जहाज में मालदीव के पर्यटन मंत्री मुस्तफा और उनकी पत्नी को बंधक बना रखा था। हमारे जांबाज सैनिकों ने जहाज तीन रॉकेट दागे। जहाज में छेद हो गया। पानी भरने लगे तो जहाज की गति कम हो गई। आगे जाकर भारतीय नौ सेना के दो जहाजों ने विद्रोहियों के जहाज से बंधक मुक्त कराए। हम माले पहुंच गए। वहां राष्ट्रपति गयूम के विश्वासपात्र मिले। उनके माध्यम से संदेश पहुंचाया गया। गयूम सुरक्षित स्थान पर छिपे हुए थे और विद्रोही उन्हें ढूंढ रहे थे। हमने ब्रिगेडियर बलसारा को सूचना दी। एके बनर्जी भी आ गए।

माले में घर-घर तलाशी अभियान
ब्रिगेडियर जोशी के मुताबिक, हमें हवाई अड्डे से हमने 10-12 लोगों को पकड़ा। उनके पास हथियार थे, लेकिन पर फायरिंग नहीं की। अन्य जगह से भागने की कोशिश की, तब दो-तीन फायर किए गए। फिर हमने माले में घर-घर तलाशी अभियान चलाया। कई लोग पकड़े। दूसरी बार के तलाशी अभियान में पांच विद्रोही और पकड़े गए। सबकुछ शांतिपूर्वक निपट गया था। यह अभियान ऑपरेशन कैक्टस के नाम से जाना जाता है। मालदीव के अभियान में उप सेनाध्यक्ष लेफ़्टिनेंट जनरल रोडरिग्स और वीपी मलिक का नाम भी उल्लेखनीय है। आपको बता दें कि मालदीव 1200 द्वीपों का एक समूह है, जो हमारे देश के दक्षिणी किनारे से 700 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में है।

एक साल रहे माले में
ब्रिगेडियर जोशी ने बताया कि हम माले में एक सप्ताह तक रहे। वापस आगरा आने के लिए हवाई अड्डे पऱ आए तो आदेश आया कि एक साल रहना है। हम माले में एक साल रहे। अब मालदीव में हमारे कई दोस्त हैं। उन्होंने कहा कि इस अभियान का पूरे देश में असर हुआ। भारतीय सेना का मान-सम्मान और अधिक बढ़ा। हमारे जवानों ने दिखा दिया कि वे हर परिस्थिति में विजय पाने में सक्षम हैं। कारगिल युद्ध के दौरान भी दुनिया देख चुकी है। ऊपर बैठी पाकिस्तान सेना को हमारे सैनिकों ने खदेड़ दिया था। इस बीच कर्नल सीके सिंह ने बताया कि मालदीव अभियान से भारतीय सेना की साख दुनियाभर में और मजबूत हुई है।
मालदीव में एयरफील्ड पर ड्रॉप किए एक हजार जवान
पत्रिका से बातचीत करते हुए कनर्ल अपूर्व त्यागी ने बताया कि तब मेरी पोस्टिंग आगरा में हुई थी। मैं अभियान में शामिल नहीं था, लेकिन मेरे कई मित्र थे। आगरा की 6 पैरा यूनिट ने कमाल का काम किया था। विद्रोहियों को चारों खाने चित कर गयूम को दोबारा सत्ता सौंप दी थी। करीब 1000 जवान मालदीव के एय़रफील्ड पर ड्रॉप किए गए थे। वहां कैसे ऑपरेशन को अंजाम दिया गया, इसका प्रस्तुतीकरण कई बार किया गया, जो मैंने भी देखा है। बहुत रोमांचक अभियान था। हमें आज भी अपने सैनिकों पर गर्व होता है कि अनजान जगह पर जाकर सफलतापूर्वक काम किया और भारत का मान बढ़ाया। भारतीय सेना है ही ऐसी। कहीं भी भेज दो, सफलता स्वयं चरण चूम लेती है।

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