वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि प्राचीन हिन्दू शास्त्रों में कहा जाता है कि, भगवान दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को ही हुआ था। इसलिए यह मार्गशीर्ष पूर्णिमा का पर्व दत्तात्रेय जयंती के नाम से भी से मशहूर है। भगवान दत्तात्रेय की उत्पत्ति त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनो देवों से मिलकर हुई थी, इसलिए उनके तीन शीश और छह भुजाएं है। श्रीमद् भगवत गीता के अनुसार भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी इसलिए इनमे ईश्वर और गुरु दोनो विद्यमान थे। इसी वजह से भगवान दत्तात्रेय “गुरुदेवदत्त” भी कहा जाता था। भगवान दत्तात्रेय के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ था, जिसमे उन्हें मानने वालें अनुयायी शामिल हुए| दत्त संप्रदाय को मानने वाले भारत के दक्षिण क्षेत्र मे अधिक लोग है।
वैदिक प्राचीन हिन्दू शास्त्रों में कहा जाता है कि इस दिन यदि गंगा नदी में स्नान किया जाए तो यह असंख्य गुना पुण्यकारी होता है। इसलिए इस दिन भक्त निर्जला उपवास रखते हैं और “ओम नमो नारायाणा” या गायत्री मंत्र का जाप करते है, इस दिन भगवान श्रीविष्णु की पूजा का विशेष महत्व है, इसलिए सत्यनारायण की कथा भी कराई जाती है, मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन, सत्यनारायण की कथा के साथ हवन आदि करना भी शुभ माना जाता है, मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन क्षमता के अनुसार दान करने से पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन भविष्यवक्ता पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि ‘भागवद गीता’ में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है- मासानां मार्गशीर्षोऽयम्। अर्थात सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष माह की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया था। इसी माह में कश्यप ऋषि ने सुन्दर कश्मीर प्रदेश की रचना की थी। इसलिए इसी माह से महोत्सवों का आयोजन होना आरम्भ हो जाता है।
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि अगहन माह को मार्गशीर्ष नाम से क्यों जानते हैं? इस माह को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा हमारे भारत देश में अनेक स्वरूपों में एवम अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष माह भी श्रीकृष्ण का ही एक रूप है।