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आगरा

Naresh Paras: गुमशुदा बच्चों के परिवारों के लिए स्याह अंधेरे में उम्मीद की एक किरण, पढ़िये ऐसे शख्स की कहानी, जिसने समझा इनका दर्द

भीख मांगने वाले बच्चों का भी समझा दर्द, स्कूल में कराया दाखिला।

आगराJul 17, 2019 / 06:07 pm

धीरेंद्र यादव

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आगरा। न चिठ्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गए…, ये वो चंद लाइने हैं, जो उन मा-बाप के लबों से निकलती हैं, जिनके बच्चे उनसे बिछुड़ गए हैं। हाथों में लाडले की तस्वीर और आंखों में आंशू लिए अपने खोए बच्चे की तलाश में मां-बाप हर दर पर दस्कत देते हैं लेकिन उन्हें अपने ‘लाल‘ नहीं मिलते। यह दर्द वह समझ सकता है, जिसके कलेजे के टुकड़े उससे दूर हो गए हों। किसी कारण से बिछुड़ गए हों। देश में हजारों बच्चे रोजाना लापता हो रहे हैं लेकिन आज भी ऐसे बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है जो आज तक अपने घर नहीं लौट पाए हैं। खोए बच्चों की तलाश में उनके मां-बाप जमीन आसमां एक कर देते हैं लेकिन उनके बच्चे नहीं मिल पाते हैं लेकिन परिजनों के अलावा एक शख्स ऐसा भी है जो ज्यादा व्यथित रहता है। हर लापता बच्चे की सुनकर उसके माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं और उसकी खोज में निकल पड़ता है। ताज नगरी आगरा के नरेश पारस ऐसे परिवारों के लिए इस स्याह अंधेरे में उम्मीद की एक किरण बने हुए हैं।
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जानिये कौन हैं नरेश पारस
नरेश पारस एक ऐसा नाम जो खोए बच्चों के साथ ही याद आता है। चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस पिछले 12 वर्षों से बिछुड़े बच्चों को उनके मा-बाप से मिला रहे हैं। आठ-आठ सालों से अनाथालयों में गुमनामी की जिंदगी जी रहे बच्चों को भी नरेश पारस ने उनके माता-पिता से मिलाया है। वह आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, दिल्ली, बाराबांकी, जालौन, झांसी, ग्वालियर, मुंबई, कर्नाटक, गाजियाबाद, हरिद्वार, आदि जनपदों के अलावा मध्य प्रदेश, मुंबई, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, कोलकाता, दिल्ली तथा पश्चिमी बंगाल जैसे राज्यों के बच्चों को भी उनके माता-पिता से मिला चुके हैं।
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ऐसे मिली प्रेरणा
फरवरी 2007 में नरेश पारस आगरा के थाना जगदीशपुरा के सामने होकर गुजर रहे थे तभी उनकी नजर एक महिला पर पड़ी जो थाने के बाहर बैठी रो रही थी। उसे देखकर नरेश पारस के कदम अचानक रूक गए और उससे रोने का कारण पूछा। पहले तो महिला ने मना कर दिया, लेकिन बार बार अनुरोध करने पर उसने बताया कि पांच साल पहले उसके तीन बच्चे एक एक करके गायब हो गए थे। जिनका आज तक कोई पता नहीं चला पुलिस भी रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है। पिछले पांच सालों से लगातार थाने के चक्कर काट रही हूं लेकिन कोई नहीं सुनता। इस करुण दास्तां को सुनकर नरेश पारस व्यथित हो गए। थाने जानकारी ली तो पता चला कि उस महिला के बच्चों की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं है। नरेश पारस ने मामला मीडिया तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में लाया। आयोग ने एसएसपी को नोटिस जारी कर रिपोर्ट तलब की। तब जाकर तीनों बच्चों की रिपोर्ट दर्ज हो सकी। उसके बाद पुलिस ने नरेश पारस के साथ मिलकर काफी प्रयास किए लेकिन बच्चों को बरामद नहीं कराया जा सका। बच्चों के गम में पिता मानसिक संतुलन खो बैठा पागलों की तरह गलियों में बच्चों को भटकने लगा और उसकी कुत्ते के काटने से मौत हो गई। बच्चों के गम में पूरा परिवार बर्बाद हो गया। परिवार की बर्बादी देखकर नरेश पारस को लगा कि समय रहते यदि उनसे परिवार की मुलाकात हो जाती तो समय उनकी रिपोर्ट दर्ज हो जाती और बच्चे मिल सकते थे। तभी से नरेश पारस ने खोए हुए बच्चों की तलाश शुरू कर दी। अब तक करीब 250 बिछुड़े बच्चों को उनके परिवार से मिला चुके हैं।
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भीख मांगने वाले हाथों में थमाई कलम
आगरा का एक गैंग मथुरा में बच्चों से भीख मंगवाता था। बच्चियों से दिन में भीख मंगवाता था और रात में उनके साथ शोषण करता था। गर्भ न ठहरे इसलिए उनको माला-डी गोलियां खिलाता था। भीख न मांगने पर हाथ पैरों को जला देता था। नरेश पारस ने इस गिरोह का पर्दाफास किया और राष्ट्रीय बाल आयोग पूरा मामला भेजा जिसके हस्तक्षेप पर पुलिस सक्रिय हुई और गैंग संचालक को गिरफ्तार कर जेल भेजा। उसके बाद नरेश पारस ने भीख मांगने वाले बच्चों के भविष्य संवारने की मुहिम शुरू कर दी। आगरा के करीब 50 भीख मांगने वाले बच्चों को आंदोलन के द्वारा स्कूल में दाखिला कराया आज वो सभी बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
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जानिये नरेश पारस के बारे में
जगदीश पुरा के नगला अजीता के रहने वाले नरेश पारस की शहर में अलग ही पहचान है। समाज शास्त्र से एमए, और मानवाधिकार में स्नातक करने वाले नरेश पारस बचपन से ही समाज के लिए कुछ करने का जज्बा रखते थे। दस वर्ष की उम्र से ही लोगों के लिए उनके रिश्तेदारों की चिठ्ठियां लिखना शुरू किया। चिठ्ठियां लिखते- लिखते लोगों की जनसमस्याएं के लिए अर्जी लिखना शुरू किया। युवा अवस्था तक आते -आते लोगों की मदद करने का जुनून बन गया तथा लोगों की समस्याएं सुलझाईं। हर असहाय और पीड़ित की सेवा करना तथा उसका न्याय दिलाना जीवन का उद्देश्य बन गया। समाज सेवा तथा पीड़ितों को न्याय दिलाने का सिलसिला अभी भी जारी है। बच्चों की सुरक्षा के मुद्दे पर कार्य कर रहे राज्य स्तरीय नेटवर्क महफूज़ के साथ जुड़ कर आगरा जनपद में स्वैच्छिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं। बाल गृहों में वर्षों से रह रहे बच्चों की काउंसलिंग कर उनके परिवारों को खोजकर उनके घर भिजवाया। लापता बच्चों की तलाश के लिए पुलिस प्रशासन, बाल आयोग, मानवाधिकार आयोग आदि से संपर्क किया गया। जिससे कई लापता बच्चों को उनके परिवार में समेकित कराया।
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ऐसे मामले जिनसे आए चर्चा में
केस नंबर 1. नारी संरक्षण गृह में बिना जुर्म नौ साल से सजा काट रही युवती को कराया आजाद। नरेश कुमार की निस्वार्थ मानवीय सेवा का ऐसा एक उदाहण है मुन्नी जो बिना किसी जुर्म पिछले नौ सालों से कैदियों की तरह सजा काट रही थी। उसके साथ हर दर्जे का उत्पीड़न किया गया। 21 जुलाई 1999 को मुन्नी को सड़क पर लावारिस अवस्था में सड़क पर घूमते हुए पकड़ा था जब उसकी उम्र महज 14 वर्ष थी। उसे 14 वर्ष की नाबालिग अवस्था में नैतिक अवस्था का हवाला देकर वेश्याओं के साथ सजा काटने को मजबूर कर दिया। मुन्नी को घर पहुंचाने के लिए नरेश पारस ने बड़ा संघर्ष किया, जिसमें सफलता भी पाई।
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केस नंबर 2. जेलों में कई बंदी ऐसे भी निरूद्ध हैं जिन्होंने आवेश में आकर अपराध कर दिया। न्यायालय ने उनको कारावास और जुर्माना अदा करने की सजा सुना दी।न्यायालय द्वारा मिली सजा तो पूरी कर ली लेकिन उनके परिवार के पास इतना पैसा नहीं था कि वह जुर्माना राशि जमा कर छूट सके। आगरा सेन्ट्रल जेल में बुलंदशहर निवासी नरेन्द्र पुत्र महावीर गैर इरादतन हत्या के आरोप में सजा काट रहा था। न्यायालय द्वारा मिली दस वर्ष की सजा तो उसने पूरी कर ली लेकि उसके परिवार के पास जुर्माना अदा करने के लिए पांच हजार रूपये नहीं थे। जेल विजिट के दौरान नरेश पारस को नरेन्द्र के मामले की जानकारी हुई तो नरेश पारस ने अपनी जेब से पांच हजार रूपये जुर्माना जमा कर वृद्ध को जेल से आजाद करा दिया। जेल में बंद अन्य ऐसे बंदियों की रिहाई के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को लिखा। मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर इस पर कार्यवाही करने के आदेश जारी कर दिए हैं। इस पर जेल प्रशासन ने भी सहयोग किया। 15 अगस्त 2018 को 33 ऐसे बंदियों को आजाद कराया इसके आलावा भी कई बंदियों को रिहा कराया जा चूका है।
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केस नंबर 3. आगरा जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय डीआईओेएस आॅफिस के पीछे झुग्गी, झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे भी स्कूल में पढ़ना चाहते थे, लेकिन स्कूल में बच्चों को यह कहकर दाखिला देने से इंकार कर दिया किस वह गंदे और उनसे बदबू आती हैं तथा वह हरिजन बच्चे हैं। इस पर नरेश पारस इन बच्चों को स्वंय नहला कर बीएसए कार्यालय आगरा के बगल में स्थित सरकारी मॉडल प्राइमरी स्कूल ले गए लेकिन फिर भी इन बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिया गया। नरेश पारस ने शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को पत्र लिखे, लेकिन उन बच्चों का दाखिला न हो सका। अंत में नरेश पारस ने डीआईओएस कार्यालय में ही पाठशाला लगाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। जिससे अधिकारियों में हड़कंप मचा और स्वंय एडी बेसिक ने नरेश पारस के साथ सरकारी विद्यालय में जाकर 43 बच्चों का दाखिला कराया। इस प्रकार सितम्बर 2014 में भीख मांगने वाले 43 बच्चों का स्कूल में दालिखा हो सका।
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केस नंबर 4. आगरा के राजनगर लोहामंडी रेलवे लाइन के पास 15 परिवार झुग्गियां बनाकर रहते हैं। इनमें से महरूननिशा नामक एक विधवा मुस्लिम महिला अपने चार बच्चों के साथ रहती थी। वह घरों में झाड़ू पोछा करके अपने बच्चों का पेट पालती थी। उसका सबसे बड़ा लड़का सोनू 11 वर्ष का तथा सबसे छोटी लड़की पांच वर्ष की थी। उसे टीबी की बीमारी ने घेर लिया। उसकी देखभाल करने वाला कोई न था। ऐसे में नरेश पारस ने महरून निशा को आगरा की टीबी अस्पताल में भर्ती कराया और उसकी देखभाल की। उसके फेफड़े पूरी तरह से खराब हो चुके थे। नरेश पारस पूरी लगन से उस मुस्लिम महिला की देखभाल करते रहे। बच्चों का राजनगर सरकारी विद्यालय में दाखिला करा दिया। उस परिवार की जरूरतें भी पूरी करते रहे। करीब एक साल लंबे इलाज के बाद महरून निशा की मौत हो गई। ऐसे में नरेश पारस उन तीनों बच्चों की अपने स्तर से देखभाल कर रहे हैं।
केस नंबर 5. नरेश पारस लापता बच्चों पर भी काफी समय से कार्य कर रहे हैं। नरेश पारस द्वारा लगभग दो दर्जन लापता बच्चों को खोजकर उनके परिजनों के सुपुर्द कराया जा चुका है। इनमें कई बच्चे ऐसे थे जो आठ, से दस सालों से अनाथालयों में रह रहे थे। उनके परिजनों के बारे में कोई सूचना नहीं थी। उन बच्चों के परिजनों को खोजकर बिछुड़े बच्चों से मिलाया। अनाथालय में रह रहे बच्चों को उनके परिवार से मिलवाया। इनमें आगराए फिरोजाबादए मथुराए भरतपुरए बदायूंए लखनऊए दिल्लीए कोलकाता तथा मध्य प्रदेश के बच्चे शामिल हैं। अधिकांश बच्चे उन गरीब परिवारों के थे जो अपने बच्चों की पुलिस थानों में रिपोर्ट दर्ज नहीं करा पाए तथा उन्हें तलाशने में पै
रवी नहीं कर पाए। नरेश पारस ने उन गरीबों के बच्चों की थानों में रिपोर्ट दर्ज कराई तथा उन्हें ढुंढवाया।

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