नरेश पारस एक ऐसा नाम जो खोए बच्चों के साथ ही याद आता है। चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस पिछले 12 वर्षों से बिछुड़े बच्चों को उनके मा-बाप से मिला रहे हैं। आठ-आठ सालों से अनाथालयों में गुमनामी की जिंदगी जी रहे बच्चों को भी नरेश पारस ने उनके माता-पिता से मिलाया है। वह आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, दिल्ली, बाराबांकी, जालौन, झांसी, ग्वालियर, मुंबई, कर्नाटक, गाजियाबाद, हरिद्वार, आदि जनपदों के अलावा मध्य प्रदेश, मुंबई, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, कोलकाता, दिल्ली तथा पश्चिमी बंगाल जैसे राज्यों के बच्चों को भी उनके माता-पिता से मिला चुके हैं।
फरवरी 2007 में नरेश पारस आगरा के थाना जगदीशपुरा के सामने होकर गुजर रहे थे तभी उनकी नजर एक महिला पर पड़ी जो थाने के बाहर बैठी रो रही थी। उसे देखकर नरेश पारस के कदम अचानक रूक गए और उससे रोने का कारण पूछा। पहले तो महिला ने मना कर दिया, लेकिन बार बार अनुरोध करने पर उसने बताया कि पांच साल पहले उसके तीन बच्चे एक एक करके गायब हो गए थे। जिनका आज तक कोई पता नहीं चला पुलिस भी रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है। पिछले पांच सालों से लगातार थाने के चक्कर काट रही हूं लेकिन कोई नहीं सुनता। इस करुण दास्तां को सुनकर नरेश पारस व्यथित हो गए। थाने जानकारी ली तो पता चला कि उस महिला के बच्चों की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं है। नरेश पारस ने मामला मीडिया तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में लाया। आयोग ने एसएसपी को नोटिस जारी कर रिपोर्ट तलब की। तब जाकर तीनों बच्चों की रिपोर्ट दर्ज हो सकी। उसके बाद पुलिस ने नरेश पारस के साथ मिलकर काफी प्रयास किए लेकिन बच्चों को बरामद नहीं कराया जा सका। बच्चों के गम में पिता मानसिक संतुलन खो बैठा पागलों की तरह गलियों में बच्चों को भटकने लगा और उसकी कुत्ते के काटने से मौत हो गई। बच्चों के गम में पूरा परिवार बर्बाद हो गया। परिवार की बर्बादी देखकर नरेश पारस को लगा कि समय रहते यदि उनसे परिवार की मुलाकात हो जाती तो समय उनकी रिपोर्ट दर्ज हो जाती और बच्चे मिल सकते थे। तभी से नरेश पारस ने खोए हुए बच्चों की तलाश शुरू कर दी। अब तक करीब 250 बिछुड़े बच्चों को उनके परिवार से मिला चुके हैं।
आगरा का एक गैंग मथुरा में बच्चों से भीख मंगवाता था। बच्चियों से दिन में भीख मंगवाता था और रात में उनके साथ शोषण करता था। गर्भ न ठहरे इसलिए उनको माला-डी गोलियां खिलाता था। भीख न मांगने पर हाथ पैरों को जला देता था। नरेश पारस ने इस गिरोह का पर्दाफास किया और राष्ट्रीय बाल आयोग पूरा मामला भेजा जिसके हस्तक्षेप पर पुलिस सक्रिय हुई और गैंग संचालक को गिरफ्तार कर जेल भेजा। उसके बाद नरेश पारस ने भीख मांगने वाले बच्चों के भविष्य संवारने की मुहिम शुरू कर दी। आगरा के करीब 50 भीख मांगने वाले बच्चों को आंदोलन के द्वारा स्कूल में दाखिला कराया आज वो सभी बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
जगदीश पुरा के नगला अजीता के रहने वाले नरेश पारस की शहर में अलग ही पहचान है। समाज शास्त्र से एमए, और मानवाधिकार में स्नातक करने वाले नरेश पारस बचपन से ही समाज के लिए कुछ करने का जज्बा रखते थे। दस वर्ष की उम्र से ही लोगों के लिए उनके रिश्तेदारों की चिठ्ठियां लिखना शुरू किया। चिठ्ठियां लिखते- लिखते लोगों की जनसमस्याएं के लिए अर्जी लिखना शुरू किया। युवा अवस्था तक आते -आते लोगों की मदद करने का जुनून बन गया तथा लोगों की समस्याएं सुलझाईं। हर असहाय और पीड़ित की सेवा करना तथा उसका न्याय दिलाना जीवन का उद्देश्य बन गया। समाज सेवा तथा पीड़ितों को न्याय दिलाने का सिलसिला अभी भी जारी है। बच्चों की सुरक्षा के मुद्दे पर कार्य कर रहे राज्य स्तरीय नेटवर्क महफूज़ के साथ जुड़ कर आगरा जनपद में स्वैच्छिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं। बाल गृहों में वर्षों से रह रहे बच्चों की काउंसलिंग कर उनके परिवारों को खोजकर उनके घर भिजवाया। लापता बच्चों की तलाश के लिए पुलिस प्रशासन, बाल आयोग, मानवाधिकार आयोग आदि से संपर्क किया गया। जिससे कई लापता बच्चों को उनके परिवार में समेकित कराया।
केस नंबर 1. नारी संरक्षण गृह में बिना जुर्म नौ साल से सजा काट रही युवती को कराया आजाद। नरेश कुमार की निस्वार्थ मानवीय सेवा का ऐसा एक उदाहण है मुन्नी जो बिना किसी जुर्म पिछले नौ सालों से कैदियों की तरह सजा काट रही थी। उसके साथ हर दर्जे का उत्पीड़न किया गया। 21 जुलाई 1999 को मुन्नी को सड़क पर लावारिस अवस्था में सड़क पर घूमते हुए पकड़ा था जब उसकी उम्र महज 14 वर्ष थी। उसे 14 वर्ष की नाबालिग अवस्था में नैतिक अवस्था का हवाला देकर वेश्याओं के साथ सजा काटने को मजबूर कर दिया। मुन्नी को घर पहुंचाने के लिए नरेश पारस ने बड़ा संघर्ष किया, जिसमें सफलता भी पाई।
रवी नहीं कर पाए। नरेश पारस ने उन गरीबों के बच्चों की थानों में रिपोर्ट दर्ज कराई तथा उन्हें ढुंढवाया।