नोटबंदी (Notebandi) से शहर की अर्थव्यस्था चरमरा गई थी, जिसकी भरपाई आज तक नहीं हो पाई है।
आगरा की बात करें तो यहां के 40 फीसदी लोगों की इसी धंधे से रोजी रोटी चलती है। पूरे आगरा में छोटे छोटे करीब 10 हजार से ज्यादा कुटीर उद्योग हैं जो इस जूता उद्योग से जुड़े हैं।नोट बन्दी ने इस व्यापार की जड़ों को हिला कर रख दिया, क्योंकि ये पूरा काम नकद लेन-देन पर चलता है। यहां काम करने वाले कारीगरों को रोज पैसे चाहिए होता हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद जब पैसे नहीं मिले, तो इन कारीगरों ने काम बंद कर दिया। वहीं छोटी जूता इकाइयों ने कामगारों को हटा दिया। लोग बेरोजगार हो गए।
पहले थे मालिक अब बन गए नौकर
नोटबंदी की मार झेल चुके जूता कारीगर शाबिर ने बताया कि नोटबंदी से पहले वो जूता कारखाने के मालिक थे, अब नौकरी के लिए खुद भटक रहे हैं। जूता कारखाना के मालिक फारुख कहते हैं कि उन्होंने नोटबंदी के बाद काम बंद कर दिया था। अब एक फैक्टरी में ठेकेदारी कर रहे हैं। वहीं जूता उद्योग से जुड़े अन्य लोगों का भी ये कहना है कि कैस लेश प्रणाली अच्छी है, लेकिन कुछ काम ऐसे हैं, जिनमें नकल लेनदेन के बिना व्यापार नहीं किया जा सकता है, ऐसा ही आगरा का उद्योग है। अब रोज कुआ खोदने वाला, कहां से स्मार्ट फोन लाकर नकद लेनदेन रहित प्रणाली से जुड़े।
सैय्यद पाड़ा निवासी शाबिर ने बताया कि एक वर्ष में बहुत कुछ बदला गया है। अब एक फैक्टरी में खुद काम करने जाते हैं। Notebandi का वो दौर आज भी याद आ जाए, तो डर लगता है। चांद कुरैशी ने बताया कि एक वर्ष में व्यापारी पूरी तरह ठप हो गया है। तब से अब तक व्यापार में बढ़ोत्तरी नहीं हो पा रही है।