पत्रकार रमा शंकर शर्मा ने बताया कि 1971 के दौरान जहां पूरे देश की नजर इस युद्ध पर थी, वहीं आगरा की सांसे भी थमी हुईं थीं। आगरा का इस युद्ध में अहम रोल था। पाकिस्तान की नजर आगरा पर भी थी। 3 दिसंबर 1971 की रात को आगरा एयरफोर्स पर 500 पाउंड वजन के 16 बम गिराए गए थे, जिनमें से तीन एयरफोर्स में रनवे पर फटे। इस दौरान भारत ने पाकिस्तान स्क्वाड्रन के बी-57 विमान को आगरा में मार गिराया था। 16 बम में से आगरा में हवाई पट्टी पर केवल तीन बम फटे, बाकी आस पास के गांव, खेतों में जाकर फटे। इसमें से भी दो बम फटे ही नहीं। तीनों बम से हवाई पट्टी को मामूली नुकसान हुआ था, जिसे रात में ही तत्कालीन एयर कमोडोर जफर जहीर के निर्देशन में ठीक करा दिया गया।
रमा शंकर शर्मा ने बताया कि आगरा से कैनबरा विमानों के आपरेशन को रोकने के लिए यह हमला किया गया था, लेकिन एक भी दिन के लिए आगरा से उड़ान बंद नहीं हुईं। तत्कालीन सेंट्रल कमान एओसी एयर वाइस मार्शल एम वार्कर ने सात दिसंबर को आगरा आकर एयरफोर्स अधिकारियों की पीठ थपथपाई थी।
भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान साल 1971 में ताज महल पर खतरा मंडराने लगा था। उस वक्त ताजमहल को काले कपड़े से ढका गया था, ताजमहल के मुख्य गुंबद और चारों मीनारों को काले कपड़े से ढका गया था। मुख्य गुंबद पर बल्लियों की पाड़ लगाकर काले कपड़े को नीचे तक लटकाया गया। गुंबद के फर्श पर पेड़ों की शाखाओं को काटकर डाला गया और हरी घास बिछाई गई ताकि यह चांदनी रात में नजर न आ सके और पाकिस्तानी विमानों को ताज महल की जगह हरियाली नजर आए। यह खतरा इसलिए भी था कि पाकिस्तानी विमानों ने ताजमहल से करीब 10 किमी. दूर एयरफोर्स स्टेशन पर बम गिराए थे। युद्ध के दौरान पूरे 15 दिन तक ताजमहल को आम पर्यटकों के लिए बंद रखा गया था।