तुलाराम शर्मा: 1982 से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को संगठित करने की प्रेरणा मिली। ऐसे मजदूर जो बिल्डिंग बनाने का काम करते हैं, या पत्थर खदान में काम करते थे। आगरा के कमला नगर में कॉलोनी बन रही थी। वहां एक श्रमिक की निर्माण कार्य करते हुए मृत्यु हो गई। उसका न तो किसी ने उसका इलाज कराया और न हीं किसी ने उसे देखा। उसकी विधवा पत्नी भी दर दर की ठोंकर खाने पर मजबूर थी। उस समय संकल्प लिया कि सरकार से एक ऐसी मांग उठाई जाए,कि जब सरकार सरकारी कर्मचारियों को अनेक सुविधाएं देती है, तो इन श्रमिकों को भी ऐसी सुविधाएं दिलाई जाएं।
पत्रिका: श्रमिकों के लिए कब शुरू की पदयात्रा?
तुलाराम शर्मा: 1970 में महाराष्ट्र सरकार ने ग्रामीण मजदूरों के लिए रोजगार गारंटी योजना लागू की। इसके बाद हमने मांग उठाई कि ये योजना भारत के एक राज्य में ही क्यों, इसे अन्य राज्यों में भी लागू किया जाए। इस योजना को उत्तर प्रदेश में लागू कराने के लिए 2100 किलोमीटर की 4 पदयात्रा की और 10 लाख मजदूरों के हस्ताक्षर एकत्र किए और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ये मांग पत्र सौंपा। राजीव गांधी ने राष्ट्रीय ग्रामीण श्रमिक आयोग बनाया।
पत्रिका: सभी अपने बारे में सोचते हैं, श्रमिकों के बारे में कोई नहीं।
तुलाराम शर्मा: ईश्वर ने जब मानव शरीर दिया है, तो अपने लिए ही नहीं। इस शरीर से समाज का भला होना चाहिए। वृक्ष के फल सभी खाते हैं, इसी सोच के साथ श्रमिकों के लिए काम करना शुरू किया।
पत्रिका: सबसे बड़ी सफलता क्या मानते हैं?
तुलाराम शर्मा: श्रमिक परिवारों के बच्चे जो शिक्षा की मुख्यधारा से दूर थे, ऐसे ही 19 हजार बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा है। इनमें से कई बच्चे बहुत अच्छे पदों पर हैं।
तुलाराम शर्मा: भारत सरकार या यूपी सरकार गरीबों की तमाम योजनाओं की घोषणा करती हैं। मांग ये है गरीब श्रमिकों को लाभ तभी मिल सकेगा, जब ग्राम स्तर पर मिनी सचिवालय बनेगा। गरीब श्रमिकों का सर्वे हो और सर्वे के आधार पर उनका रजिस्ट्रेशन हो और रजिस्ट्रेशन के आधार पर उनको सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जा सके।