Radhasoami मत के गुरु दादाजी महाराज ने वसंत पंचमी पर patrika.com के माध्यम से दुनियाभर के सत्संगियों को भेजा संदेश
-प्रेम और भक्ति के मार्ग पर जो भी चलेगा, वह अद्भुत शक्ति का अनुभव कर सकता है
-घर वाले, बीवी, मियां कोई कुछ भी कहे, लेकिन गुरु के प्रति आपकी प्रीत सर्वोपरि होनी चाहिए
-हजूर महाराज के चरनों को पकड़िए, लिपटिए तो वह अपनी दया से भवसागर से पार करा देंगे।
-जीव के कल्याण तथा जिन्दगी को बेहतर ढंग से जीने के लिए राधास्वामी मत को स्वीकार करें
आगरा। बसंत पंचमी 29 जनवरी को मनाई जा रही है। आज से 150 साल पूर्व बसंत पंचमी के दिन ही राधास्वामी मत की स्थापना हुई थी। इस मौके पर राधास्वामी मत के आचार्य दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर, पूर्व कुलपति आगरा विश्वविद्यालय) ने patrika.com के माध्यम से दुनियाभर के सत्संगियों को एक संदेश भेजा है। उन्होंने बताया है कि राधास्वामी मत क्या है और सत्संगियों को क्या करना चाहिए।
अगर आप हजूर महाराज और उनके प्रेमाभक्ति के आदर्श को मानते हैं तो आपके अंदर गुंजाइश और धीरज होना चाहिए। छोट बना रहना, यह दीनता का प्रतीक है। हर एक का फर्ज है कि वह कुलमालिक राधास्वामी दयाल का पूरा करके माने, राधास्वामी नाम को ध्वन्यात्मक माने, वक्त गुरु की तलाश करे और जब वह मिल जाएं, तो उनके साथ ऐसे मिल जाए कि दुई रह नहीं जाए। राधास्वामी मत की मौलिक शिक्षाओं को समझें और अपने जीव के कल्याण तथा इसी जिन्दगी को बेहतर ढंग से जीने के लिए राधास्वामी मत को स्वीकार करें। इकरंगी प्रीत का निभाना कठिन होता है। इसीलिए कहा है-
आब आंट सहना सुगम, सुगम खड़ग की धार नेह निबाहन एक रस, महा कठिन व्यवहार। लोग ऊपर से प्यारभाव दिखाते हैं, लेकिन अंदर से मनमुटाव, गलतफहमी यहां तक कि नेकनीयती की जगह पर बदनीयती आ जाती है और वह ईर्ष्या तथा विरोध का रूप ले लेती है। ज्यादातर परिवारों में सबसे बड़ी चीज देखने में आती है कि एक दूसरे के लिए कोई गुंजाइश नहीं रही है। मैं सब सत्संगियों से यह कहना चाहता हूं कि अगर आप हुजूर महाराज और उनके प्रेमाभक्ति के आदर्श को मानते हैं तो आपके अंदर गुंजाइश होना बहुत जरूरी है। बड़े और संपन्न व्यक्ति का तो आदर सब करते हैं, इंसान तो वह है जो गरीब से गरीब का आदर करे, छोटापन महसूस न करे क्योंकि छोटा बना रहने और छोटेपन में बड़ा अंतर होता है। छोटा बना रहना, यह दीनता का प्रतीक है। आप लोगों को अपने व्यवहार, अपने आदर्शों और कर्तव्यों को निभाने में इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि आपसे कोई काम ऐसा न हो जाए जो हजूर महाराज के आदर्शों के विपरीत हो। हर एक का फर्ज है कि वह कुलमालिक राधास्वामी दयाल का पूरा मान करे।
कबीरा इश्क का नाता दुई को दूर कर दिल से, जो चलना राह नाजुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या। एक निगाह अपने प्रीतम की ओर लगी रहनी चाहिए। सत्संग में दिलचस्पी लेनी चाहिए। परमार्थ के नाम पर एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम हर व्यक्ति अपने व्यस्त कार्यक्रम में से निकाल सकता है। याद रखिए कि प्रीतम से प्रीत तो हो जाती है लेकिन हजूर महाराज फरमाते हैं कि जो प्रीतम से प्रीत करते हैं, वह भी प्यारे लगने चाहिए। मैं चाहता हूं कि ऐसा ही प्रीत का रिश्ता आपस में सत्संगियों का होना चाहिए। जब आपका इष्ट और इश्क एक हैं तो फिर आप लोगों को आपस में नाइत्तफाकियां क्यों होती हैं। अगर आप हजूर महाराज के सच्चे अनुयायी हैं तो आप लोगों की रहनी-गहनी प्रेमपत्र के आदर्शों के आधार पर होनी चाहिए।
बेशक मन बहुत उत्पात मचाता है, चैन से नहीं रहने देता और उसके साथ-साथ दुनिया की भी बहुत सी समस्याएं जैसे कभी धन का अभाव, मन पर तंगी, मानसिक तनाव आदि इंसान को ग्रसित रखती हैं, लेकिन प्रेम और भक्ति के इस मार्ग पर जो भी आदमी चलेगा, वह धीरे-धीरे अद्भुत शक्ति का अनुभव कर सकता है। फिर वह दुख में अधिक दुखी नहीं होगा और सुख में अधिक सुखी नहीं होगा। इसी प्रकार जो कुछ समस्या आती है, वह सुलझ सकती है अगर आपके रिश्ते की डोर अपने गुरु के साथ मजबूती से बँधी रहे। घर वाले, बीवी, मियां कोई कुछ भी कहे, लेकिन गुरु के प्रति आपकी प्रीत सर्वोपरि होनी चाहिए। राधास्वामी मत में पहले राधास्वामी दयाल हैं और उनकी दया से गुरु हैं। जब गुरु मिल जाए तो राधास्वामी दयाल के चरणों में पहुंचा जा सकता है। फिर दुनियादारों के प्रति आपका दृष्टिकोण बदल जाएगा। आप क्षमा ज्यादा करेंगे, बर्दाश्त ज्यादा करेंगे, धीरज ज्यादा रखेंगे, क्रोध नहीं करेंगे और फौरन भड़क नहीं उठेंगे। एक दिन ऐसी स्थिति आ जाएगी कि कोई दुख-संताप असर नहीं करेगा और न ही कोई सुख-समृद्धि का प्रभाव पड़ेगा।
संत मत की शिक्षा देने के लिए भी अनेक प्रकार के लोग इकट्ठे हो गए हैं और मनगढ़ंत बातें बनाकर ग्रंथों के विपरीत बोलते और बहकाते हैं। हजूर महाराज समुद्र को गागर में लाए हैं, फिर तुम्हें चिन्ता क्या है। वह गागर तुम्हारी उस बूंद को सागर में मिला सकती है। हजूर महाराज के चरनों को पकड़िए, लिपटिए तो वह अपनी दया से भवसागर से पार करा देंगे।
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