ये है नाता
इतिहासकार राज किशोर राजे ने बताया कि 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी दी गई। तीनों ही क्रांतिकारी आगरा के लोगों के दिलों में बसते थे। यहां उन्होंने एक वर्ष का कार्यकाल बिताया साथ ही लगातार तीन वर्ष तक वे आगरा के संपर्क में रहे। आगरा इन क्रांतिकारियों के लिए मुफीद था, कारण था कि एक तो आगरा में क्रांतिकारियां गतिविधियों बहुत अधिक नहीं थीं, जिससे आगरा शांत था। यहां रहने पर किसी को शक भी नहीं हुआ, वहीं आगरा में रहने के बाद इन क्रांतिकारियों को कैलाश, कीठम और भरतपुर के जंगलों का भी फायदा मिलता था।
इतिहासकार राज किशोर राजे ने बताया कि किराये का कमरा लेकर वे यहां रहे थे, उस जगह का नाम नाम अब भगत सिंह द्वार है। नूरी दरवाजा पर स्थित ये जगह आज भी शहीद भगत सिंह की यादों को संजोए बैठी है। यहां आज भी वो इमारत है, जहां सरदार भगत सिंह ने एक वर्ष का समय बिताया था, लेकिन आज ये इमारत बेहद जर्जर हो चुकी है। इस इमारत के लिए कोई समाज सेवी संगठन, या प्रशासनिक अमले ने कभी कोई कार्य नहीं किया।