ज्योतिषाचार्य डॉ. अरबिंद मिश्र बताते हैं कि सीता माता की शादी के बाद उन्हें काफी कष्ट सहने पड़े थे। उन्होंने 14 वर्षों तक भगवान राम के साथ वनवास काटा। रावण ने उनका हरण किया। लंका में वे लंबे समय तक भगवान राम के वियोग में रहीं। जब वे वापस लौटीं तो गर्भवती सीता का भगवान राम ने परित्याग कर दिया। राजा जनक के घर राजकुमारी बनकर रहीं सीता माता कभी रानी बनकर सुख नहीं उठा सकीं। उनका वैवाहिक जीवन बेहद कष्टप्रद था। इसलिए लोगों को डर रहता है कि कहीं इस दिन बेटी का विवाह करने से उसे भी माता सीता की तरह जीवन में कष्ट न भोगने पड़ें। इस कारण लोग अपनी बेटी की शादी विवाह पंचमी के दिन करने से परहेज करते हैं। लेकिन इस उत्सव को धूमधाम से मनाते हैं।
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरबिंद मिश्र बताते हैं कि भगवान राम संसार में सभी के आदर्श हैं इसलिए ये दिन धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इस दिन मंदिरों आदि में भगवान राम और माता सीता का विवाह आदि कराया जाता है। कई जगह राम बारातें भी निकलती हैं। घरों में भगवान राम और माता सीता के इस उत्सव को मनाने के लिए इस दिन घर में पकवान आदि बनाकर उन्हें भोग लगाना चाहिए। भगवान राम और माता सीता की चौपाइयां, राम चरित मानस का पाठ, भजन आदि करना चाहिए।
मूलरूप से नेपाल के निवासी व आगरा में लंबे समय से रह रहे मनु थापा बताते हैं कि सीता माता मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री थीं। मिथिला अब नेपाल का एक हिस्सा है। इसलिए विवाह पंचमी को भारत के अलावा नेपाल में भी काफी धूमधाम से मनाया जाता है। वे बताते हैं कि वहां उत्सव के दौरान भगवान राम और माता सीता की कथा सुनाई जाती है लेकिन उसका अंत उनके विवाह प्रकरण पर ही कर दिया जाता है क्योंकि माता का आगे का जीवन काफी कष्टकारी था। साथ ही बेटी के सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए किसी भी परिवार में विवाह पंचमी के दिन विवाह नहीं किया जाता।