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आगरा

पृथ्वी दिवस विशेषः विदेशी आक्रमणकारी ये वृक्ष उत्तर प्रदेश की भूमि का ‘खून’ चूस रहा

भूगर्भ जलस्तर की गिरावट का भी बड़ा कारण, इसकी जड़ें 21 मीटर तक लम्बी होने के कारण भूजल को सोखने की क्षमता रखती हैं।

आगराApr 21, 2019 / 01:25 pm

अमित शर्मा

World eath day

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आगरा। विदेशी आक्रमणकारी प्रजाति ‘विलायती बबूल’ (प्रोसोफिस जूलीफ्लोरा) के वृक्ष हमारे प्रदेश के वनों की भूमि का खून चूस रहे हैं और ये हमलावर वृक्ष न केवल हमारी पृथ्वी के पर्यावरण पर चोट पहुंचा रहे हैं बल्कि भारी आर्थिक नुकसान भी कर रहे हैं। आगरा के जंगलों में भी, चाहे वे ताज नेचर वॉक हो, कीठम हो या मऊ के जंगल, विलायती बबूल पूरी तरह से फैल चुका है, जिसके कारण हमारे स्थानीय प्रजाति के वृक्ष, झाड़ियाँ व पौधे पनप नहीं पा रहे हैं व हमे विरासत में मिले वृक्ष व हरियाली लगभग समाप्त सी हो चुकी है।
जैव-विविधता को गंभीर नुकसान

हमारी उक्त देशी प्रजातियों के वृक्षों व झाड़ियों को पानी की कम आवश्यकता होती है और वे हमारे स्थानीय वातावरण में सुगमता से उगते व बढ़ते हैं, वहीं विलायती बबूल हमारी जैव-विविधता को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। भूगर्भ जलस्तर की गिरावट का भी कारण बन रहा है। पक्षी व तितलियाँ भी विलायती बबूल के जंगलों में नहीं दिखाई देते हैं जबकि स्थानीय प्रजातियों के वृक्षों पर पक्षी अपना घोंसला बनाते हैं और उनकी संख्या में आशातीत वृद्धि होती है। भूगर्भ जलस्तर पर प्रतिकूल प्रभाव का मुद्दा मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष भी आया था और कोर्ट ने इस महत्वपूर्ण तथ्य को माना कि विलायती बबूल जलस्तर को प्रभावित कर रहा है।
आगरा व ब्रज के वनों के वृक्ष व झाड़ियाँ. जो समाप्त प्रायः हैं-

वृक्षः-कदम्ब, तमाल, रेमजा, कैथ, पलाश, बहेड़ा, हर्र, धौं, देशी बबूल, अंकोल, दतरंगा, कुमठा, बेल, हिंगोट, पीलू, खिरनी, दूधी, छोंकर, सहजन, बेर
झाड़ियाँः-करील, हेमकन्द, अडूसा, चित्रक, वज्रदन्ती, अरनी, गुग्गल

विलायती बबूल का दुष्प्रभाव

जहाँ कहीं भी विलायती बबूल उग रहा है, उसके दुष्प्रभाव देखे जा सकते हैं। वह मिट्टी का पानी सोखता है व आसपास के क्षेत्र में वायु की नमी को भी खत्म कर देता है और मिट्टी में इस प्रकार का रासायनिक प्रभाव छोड़ता है कि कोई दूसरा पौधा इसके आसपास पनप ही नहीं पाता है। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार विलायती बबूल की जड़ें 21 मीटर तक लम्बी होती हैं जो भूजल को सोख लेती हैं। विलायती बबूल के बीजों को पक्षी भी नहीं खाते हैं।
वन की स्थित

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इण्डिया (FSI) के अनुसार आगरा में ओपन फॉरेस्ट (Open Forests) व मध्यम घनत्व वाले वनों (Moderate Dense Forests) की स्थित निम्नानुसार हैः-

प्रकार 2001 2003 2007 2017
(वर्ग किमी क्षेत्र) (वर्ग किमी क्षेत्र) (वर्ग किमी क्षेत्र) (वर्ग किमी क्षेत्र)

ओपिन फॉरेस्ट 145 199 209 209

मध्यम घने वन 112 74 67 63

ओपिन फॉरेस्ट – जहाँ 10 प्रतिशत से 40 प्रतिशत कैनोपी कवर है।
मध्यम घने वन – जहाँ 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत कैनोपी कवर है।

आगरा में वन की स्थिति

आगरा में वर्ष 2001 में ओपिन फॉरेस्ट 145 वर्ग किमी0 थे और मध्यम घने वन 112 वर्ग किमी0 थे, किन्तु वर्ष 2003 के सर्वे के अनुसार मध्यम घने वन 112 वर्ग किमी0 से घटकर 74 किमी0 ही रह गये और ओपिन फॉरेस्ट 145 वर्ग किमी0 से बढ़कर 199 वर्ग किमी0 हो गये। वर्ष 2007 में यह ओपिन फॉरेस्ट 199 वर्ग किमी0 से बढ़कर 209 वर्ग किमी0 हो गये और मध्यम घने वन घटकर 67 वर्ग किमी0 रह गये। वर्ष 2017 में ये मध्यम घने वन कुल 63 वर्ग किमी0 ही रह गये। इस प्रकार आगरा के वनों में वृक्षों की संख्या क्रमशः कम होती जा रही है और मध्यम घने वन (जहाँ 40 से 70 प्रतिशत तक वृक्षों का कैनोपी कवर होता है) ओपिन फॉरेस्ट (जहाँ 10 से 40 प्रतिशत तक वृक्षों का कैनोपी कवर होता है) में परिवर्तित हो रहे हैं।
केसी जैन का सुझाव

आगरा डवलपमेन्ट फाउण्डेशन के सचिव केसी जैन ने अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) केअवसर पर विलायती बबूल से सबको सावधान किया है। उन्होंने देशी प्रजाति के वृक्षों व झाड़ियों का रोपण किये जाने के सुझाव प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र द्वारा प्रेषित किये। उन्होंने मुख्यमंत्री से प्रदेश में विलायती बबूल के वृक्षों की रोकथाम के लिए यथाशीघ्र कदम उठाने की मांग की है। जैव-विविधता को बढ़ाने के साथ-साथ विलुप्तता की ओर अग्रसर देशी वृक्षों और पौधों की विरासत को अक्षुण्ण रखने की जरूरत है।
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