सिविल अस्पताल में नेत्र विभाग में प्रति वर्ष दान में आती हैं ५५० आंखें
३५ फीसदी से मिलती है जरूरतमंदों को रोशनी
सिविल अस्पताल में नेत्र विभाग में प्रति वर्ष दान में आती हैं ५५० आंखें
अहमदाबाद. शहर के सिविल अस्पताल के नेत्र विभाग (आई हॉस्पिटल) में प्रति वर्ष दान में औसतन साढ़े पांच सौ आंखें दान में आती हैं। इनमें से ३५ फीसदी से जरूरतमंदों को रोशनी मिलती है।
शहर के असारवा क्षेत्र स्थित मंजूमिल में बने नए आई हॉस्पिटल (सिविल अस्पताल) में प्रतिवर्ष नेत्रदान का औसत साढ़े पांच सौ है। पिछले तीन वर्ष में लगभग सोलह सौ आंखें अस्पताल में आईं थी। इनमें से ४८० से जरूरतमंदों को रोशनी मिली थी। सारवा स्थित नेत्र अस्पताल के कॉर्निया विभागाध्यक्ष डॉ. जागृति एन. जाडेजा ने बताया कि अस्पताल में मृत्यु के बाद या फिर सड़क दुर्घटना और दिल के दौरे से होने वाली मौत के बाद मिलने वाली आंखें (कॉर्निया) की संख्या पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले बढ़ी है। इसमें अभी और जागरूकता की जरूरत है। संभावना है कि आगामी दिनों में यह संख्या और बढ़ जाएगी। डॉ. के अनुसार दान के बाद आंखों को २ से ६ डिग्री तापमान में रखा जाता है जिसके बाद सीमित दिनों में उन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है।
सड़क दुर्घटना एवं कार्डियाक मौत के बाद दान में दी जाने वाली आंखों की क्वालिटी बेहतर
चिकित्सकों के मुताबिक सड़क दुर्घटना में मौत और दिल के दौरे के बाद होने वाली मौतों के बाद दान में की जाने वाली आंखों की क्वालिटी बेहतर हो सकती है। आंख भी अच्छी कंडीशन में हो सकती है। उनके अनुसार दान में मिली आंखों में से ३५ फीसदी ही ट्रान्सप्लान्ट में उपयोगी होती है। शेष का उपयोग विद्यार्थियों के लिए सीखने में किया जा सकता है।
गहन जांच के बाद होता है ट्रान्सप्लान्ट
दान में दी हुई सभी तरह की आंखें होती हैं। इनकी गहन जांच होती है। सबसे पहले गंभीर बीमारी जैसे एचआईवी व अन्य गंभीर संक्रामक बीमारियों की जांच की जाती है। जांच में उचित पाई जाने पर ही उनका मरीज में ट्रान्सप्लान्ट किया जाता है।
आधी जरूरत भी पूरी नहीं होती
देश में प्रतिवर्ष लगभग एक लाख आंखों की जरूरत होती है जबकि दान में आई हुई आंखों की संख्या पचास हजार से भी कम होती है। इनमें भी सभी अच्छी श्रेणी की नहीं होती। यदि जागरूकता हो तो कोई भी जरूरतमंद को वेटिंग में नहीं रहना पड़ेगा।
डॉ. मरियम मंसूरी, निदेशक आई हॉस्पिटल
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