ईरानी चाय…
गुजरात से ईरान का रिश्ता है थोड़ा न्यारा
उपेन्द्र शर्मा आजकल वैसे तो ईरान के पेट्रोल और चाबहार बन्दरगाह की चर्चा वैश्विक स्तर पर हो रही है लेकिन गुजरात से ईरान का रिश्ता थोड़ा न्यारा है। गुजरात में ईरानी चाय पिए बिना लाखों लोगों का एक दिन भी नहीं गुजरता है। ईरान का एक पुराना नाम आर्यान (आर्यों का स्थान भी है) और पारस (पर्शिया) भी है। आर्यों के जिस स्थान को प्रमाणिक मानने पर ज्यादातर विद्वान एकमत हैं वो ईरान ही है। महाभारत में नकुल और सहदेव की मां माद्री का पीहर ईरान ही बताया जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता के जो अवशेष सिन्ध में मिले हैं उनका विस्तार पश्चिम में ईरान, दक्षिण-पूर्व में गुजरात (लोथल), पूर्व में राजस्थान (पीलीबंगा-कालीबंगा) और उत्तर में पंजाब तक मिलते हैं।
19वीं-20वीं सदी में पारस के व्यापारी गुजरात के बंदरगाहों पर उतरे थे तो अपने साथ लाए थे ईरानी चाय, बन मस्का, बिस्किट, ब्रेड, केक आदि। आज भी ईरान, अरब, सिन्ध और गुजरात के बीच में समन्दरी रास्तों से आवाजाही बनी हुई है। पारसियों (टाटा वाले भी) का व्यापारिक हुनर भी तभी यहां पंहुचा। गुजरातियों को यह सब चीजें ऐसी पसन्द आई कि मानों यहीं जन्मी हो।
पुराने अहमदाबाद शहर में एक ईरानी रेस्टोरेन्ट (तीन दरवाजा) है। यहां दिन भर में ईरानी चाय के हजारों कप लोग बड़े प्यार से खींचते हैं। साथ में खाते हैं बन (फूली हुई ब्रेड) और मस्का (मक्खन)। ईरानी चाय में चाय पत्ती थोड़ी कम होती है। थोड़ी-सी अतिरिक्त मीठी होती है और दूध व क्रीम (मलाई) से बनी होती है। मीठे के प्रति चूंकि गुजराती माणसों (मनुष्यों) का प्रेम पहले से ही था तो ईरानी चाय उनको भानी ही थी।
एक बड़ी खास बात यह है कि इस होटल के मालिक मुस्लिम हैं और खुद गायें पालते हैं। उन्हीं गायों के दूध से ईरानी चाय बनाते हैं और बन में लगाने के लिए मस्का (मख्खन) भी। इसलिये कह सकते हैं कि शुद्धता का पूरा ध्यान रखा जाता है।
पुराने अहमदाबाद के ही लाल दरवाजा इलाके में एक लक्की होटल है जहां चाय पीने के सब से बड़े मुरीद थे मशहूर पेन्टर एम.एफ. हुसैन। यह लक्की होटल एक कब्रिस्तान में है और लोग कब्रों के इर्द-गिर्द बैठकर ही चाय पीते हैं।
गुजरात के अलावा ईरानी चाय मुंबई और हैदराबाद में भी खासी लोकप्रिय है। तो कभी इन जगहों पर जाना हो तो चुस्की खींचना मत भूलना, आखिर ईरान से नाता हजारों साल पुराना जो है…..