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अहमदाबाद

Ahmedabad News : अद्भुत लीला : हर वर्ष बढ़ती जा रही त्रिशूल की ऊंचाई

आस्था का बड़ा केन्द्र है माटेल का खोडियार माता मंदिर, मोरबी के वांकानेर राजमार्ग से सात किलोमीटर अंदर माटेल गांव स्थित है। मान्यता है कि इस गांव में खोडियार माता का मंदिर करीब 1100 वर्ष पुराना है। वर्तमान में जिस स्थान पर माताजी का मंदिर स्थित है, वहीं माताजी के प्रकट होने की मान्यता है।

अहमदाबादOct 22, 2020 / 10:45 am

Binod Pandey

राजकोट. मोरबी जिले के मंदिरों में माटेल गांव के खोडियार माताजी का मंदिर का प्राचीन काल से धार्मिक महत्व है। इस मंदिर में माता अपनी सातों बहन के साथ विराजमान हैं। भक्त अपनी मनोकामना लिए दूर-दूर से यहां आते हैं। गुजरात से ही नहीं, महाराष्ट्र आदि राज्यों के बड़ी संख्या में श्रद्धालु हर वर्ष दर्शन करने आते हैं। माताजी के समक्ष श्रद्धालु मन्नत रखते हैं, पूरी होने पर दर्शन करने आते हैं।
मोरबी के वांकानेर राजमार्ग से सात किलोमीटर अंदर माटेल गांव स्थित है। मान्यता है कि इस गांव में खोडियार माता का मंदिर करीब 1100 वर्ष पुराना है। मंदिर के महंत रणछोड़ दूधरेजिया के अनुसार फिलहाल जिन्हें लोग खोडियार माताजी के नाम से जानते हैं, इनका वास्तविक नाम जानबाई था। बचपन में जानबाई यानी खोडियार माताजी अपनी सात बहनों और भाई के साथ खेलती थी। इसी दौरान खोडियार माता के भाई को सांप ने काट लिया। भाई को जिंदा करने के लिए माताजी हाल में माटेल गांव में मंदिर के सामने के भाग में माटेलिया धरा स्थित है, उससे वह पाताल लोक गईं। एक अन्य मान्यता के अनुसार माटेल गांव में भूरा भरवाड था, जिसकी एक गाय का दूध रोज दूहा जाता था। एक दिन उसकी गाय माटेलिया धरा में जाने लगी तो वह उसकी पूंछ पकडक़र इसी माटलिया धरा में गया था। अंदर जाने पर पता चला कि धरा में सोने का मंदिर था और माताजी झूले पर झूल रहीं थी। उसकी गाय रोज दूही जाती थी, इसका उसने माताजी से मुआवजा मांगा। तब माताजी ने भूरा भरवाड को ज्वार के दाने दिए। भूरा भरवाड ने उन दानों को फेंक दिया, लेकिन एक दाना उसके कपड़े में चिपक गया, जो कि सोने का था। वर्तमान में जिस स्थान पर माताजी का मंदिर स्थित है, वहीं माताजी के प्रकट होने की मान्यता है।
एक ऐसी भी लोक मान्यता है कि भूरो भरवाड ने माटलिया धरा में सोने का मंदिर देखा था, इस बात की जानकारी होने पर राजा ने धरा में से सोने का मंदिर बाहर निकालने के लिए 999 पात्र लगवाए थे। इसके बाद पूरी गर्मी माटलिया धरा के समीप के भाणेजीयो धरो में पानी बाहर निकाला। फिर भी माटलिया धरा खाली नहीं हुई। वर्तमान में भी माटेल गांव के लोग माटलिया धरा का पानी सीधे पीने के उपयोग मेें लेते हैं।
श्रद्धालुओं के ठहरने और भोजन की सुविधा

माताजी के दर्शन करने श्रद्धालु खासतौर से मंगलवार और रविवार को यहां पहुंचते हैं। लोक आस्था का केन्द्र बने इस मंदिर में हर वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है। मंदिर में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए व्यवस्था और दोनों समय के भोजन के लिए अन्नक्षेत्र की सुविधा विकसित की गई है। मंदिर में 140 गायों की गौशाला भी है।
लोगों का मानना है कि इस गांव के लोग कभी पानीजनित बीमारी से पीडि़त नहीं होते हैं। माटलिया धरा का पानी बाहर से आए श्रद्धालु अपने साथ ले जाते हैं। मोरबी और आसपास के क्षेत्रों से श्रद्धालु पैदल चल कर मंदिर पहुंचते हैं। शनिवार रात पदायात्रियों की सेवा करने के लिए सेवाभावी लोग मोरबी-वांकानेर राजमार्ग पर शिविर लगाते हैं। राज्य सरकार ने माटेल गांव मंदिर का समावेश पवित्र यात्राधाम में किया है। सरकार ने इस मंदिर के विकास के लिए एक करोड़ रुपए भी दिए हैं।
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