पूर्व विधायक भूषण भट्ट बताते हैं कि दरअसल, कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन हुआ था। ऐसे समय में रोजगार -धंधे तो ठप थे। आमजन अपने घरों में दुबके रहते थे। कोई टेलीविजन देखकर तो कोई मोबाइल देखकर अपना समय बिताता था। ऐसे में ख्याल क्यों ना आमजन को किताबें मुहैया कराई जाए ताकि उनका समय व्यतीत हो और कुछ ज्ञान की बातें ही जानने को मिलें।
पिता को मिली पुस्तकें सजाईं.. वे बताते हैं कि उनके पिता अशोक भट्ट इस इलाके के कई बार न सिर्फ विधायक हैं बल्कि वे राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं। समारोहों में अक्सर उनका आना जाना होता था या फिर पुस्तक विमोचन होता था, तो ऐसी बहुमूल्य किताबें अक्सर उन्हें सौगात के तौर पर मिलती थी। करीब दो से ढाई हजार किताबे ंथी। इसके लिए बकायदा लाइब्रेरी बना दी। ये किताबें पिता की धरोहर हैं तो उनको संजोकर रखा है ताकि ये दूसरों के काम आ सके। इसके चलते ही इन किताबों को ही फुटपाथ सजाना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री ने थे उन्होंने ‘वांचे गुजरातÓ की पहल की थी, जिसमें प्रेरणादायक, जीवनपयोगी और धार्मिक किताबों के जरिए वांचन की ललक जगाना था। यह भी उसी दिशा में एक कदम है जिसमें आमजनों किताबें पढऩे की ललक जागे। विशेष तौर पर धार्मिक, प्रेरणादायक कहानियां, जाने-माने लेखकों की पुस्तकें हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘बायोपिकÓ पर लिखी पुस्तक भी है। एक व्यक्ति जगदीश त्रिवेदी हैं, जिन्होंने लॉकडाउन में बिताए अपने पचास दिनों पर किताब लिख दी है। यह किताब भी इस लाइब्रेरी में है। फिलहाल हर रविवार को सौ से ज्यादा लोग आते हैं कोई किताबें ले जाता है तो कोई दे भी जाता है।