उन्होंने कहा कि संसद के अधिनियम में समाविष्ट घोषणा से प्रेरित और प्रोत्साहित होकर राज्य सरकार ने कई जाने-अनजाने ऋषियों समेत अथर्ववेद और महर्षि चरक की ओर से पेश आयुर्वेद का प्राचीन ज्ञान देनेवाली कॉलेजों, राज्य एवं देश के लोगों में आयुर्वेद का ज्ञान बढ़ाने और आयुर्वेद में शिक्षा का स्तर बढ़ाने और आयुर्वेद पद्धति में गहन शोध के जरिए नई शिक्षआ पद्धति विकसित की जा सकेगी, जिससे एलोपैथिक, होम्योपैथिक और औषध पद्धतियों के साथ आयुर्वेद पद्धति सुसज्जित और अत्याधुनिक हो सकेगी। राज्य सरकार गुजरात आयुर्वेद यूनिवसिटी अधिनियम 1965 रद्द कर और कई प्रक्रियाएं जिनमें ज्यादा समय लगता है उन्हें नई तरीके से लागू किया जाएगा। आयुर्वेद यूनिवर्सिटी और कॉलेज प्रशासन की नई पद्धतियां भी शामिल की जाएंगी।
एलोपैथी के दुष्प्रभाव से घटी रोग प्रतिकारक क्षमता उन्होंने कहा कि एलौपैथी चिकित्सा पद्धति के दुष्प्रभाव से रोग प्रतिकारक शक्तियों में कमी देखने को मिली है। ऐेसे में आयुर्वेद और भारतीय चिकित्सा पद्धति का प्रचार-प्रसार हो और लोग भारतीय चिकित्सा पद्धति अपनाएं और इस पद्धति के विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाने के लिए राज्य सरकार और केन्द्र सरकार कटिबद्ध है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा अत्याधुनिक जीवनशैली के चलते व्यक्ति पर कार्य का दबाव बढा है। आहार-विहार में बदलाव से लाइफ स्टाइल रोगों का प्रमाण बढा है। इस पर योग और भारतीय चिकित्सा पद्धतिसे नियंत्रण पा सकते है। जीवनशैली को सुदृढ़ बनाने के लिए आयुर्वेद की यह चिकित्सा पद्धति कारगर हो रही है।