कम आयु में कोकलियर इम्पलांट बेहतर
कोकलियर इम्पलांट के बेहतर परिणाम कम आयु में मिलते हैं। क्योंकि कोकलियर इम्पलांट से व्यक्ति सुनने लग जाता है लेकिन बोलने में तकलीफ होती है। जिस तरह से बचपन से बोलना सीखा जाता है ठीक उसी तरह से कोकलियर इम्पलांट के बाद बोलने की ट्रेनिंग (स्पीच थेरेपी) की जरूरत होती है। डॉ. विश्वकर्मा का कहना है कि अब ज्यादातर राज्यों में सरकार की आर्थिक सहायता से ये इम्पलांट किए जा रहे हैं। इस तरह की सहायता से गुजरात में वर्ष 2013 में कोकलियर इम्पलांट किया गया था।
कोकलियर इम्पलांट के बेहतर परिणाम कम आयु में मिलते हैं। क्योंकि कोकलियर इम्पलांट से व्यक्ति सुनने लग जाता है लेकिन बोलने में तकलीफ होती है। जिस तरह से बचपन से बोलना सीखा जाता है ठीक उसी तरह से कोकलियर इम्पलांट के बाद बोलने की ट्रेनिंग (स्पीच थेरेपी) की जरूरत होती है। डॉ. विश्वकर्मा का कहना है कि अब ज्यादातर राज्यों में सरकार की आर्थिक सहायता से ये इम्पलांट किए जा रहे हैं। इस तरह की सहायता से गुजरात में वर्ष 2013 में कोकलियर इम्पलांट किया गया था।
सिविल अस्पताल में ही डेढ़ हजार से अधिक इम्पलांट
अहमदाबाद सिविल अस्पताल के ईएनटी सर्जन डॉ. देवांग गुप्ता ने बताया कि सिविल अस्पताल में ही डेढ़ हजार से अधिक कोकलियर इम्पलांट हो गए हैं। आमतौर पर एक इम्पलांट की कीमत छह से आठ लाख रुपए तक हो सकती है लेकिन गुजरात सरकार ने स्कूल हेल्थ प्रोग्राम के अन्तर्गत इस तरह का ऑपरेशन निशुल्क होता है। यही कारण है कि सैकड़ों बच्चे आए दिन मूक-बधिरता जैसी समस्या के चंगुल से छूट रहे हैं। उन्होंने लोगों से अपील की है कि बच्चे के जन्म के दौरान बहरेपन का टेस्ट कराएं, ताकि आगे चलकर किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़े।
अहमदाबाद सिविल अस्पताल के ईएनटी सर्जन डॉ. देवांग गुप्ता ने बताया कि सिविल अस्पताल में ही डेढ़ हजार से अधिक कोकलियर इम्पलांट हो गए हैं। आमतौर पर एक इम्पलांट की कीमत छह से आठ लाख रुपए तक हो सकती है लेकिन गुजरात सरकार ने स्कूल हेल्थ प्रोग्राम के अन्तर्गत इस तरह का ऑपरेशन निशुल्क होता है। यही कारण है कि सैकड़ों बच्चे आए दिन मूक-बधिरता जैसी समस्या के चंगुल से छूट रहे हैं। उन्होंने लोगों से अपील की है कि बच्चे के जन्म के दौरान बहरेपन का टेस्ट कराएं, ताकि आगे चलकर किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़े।