सिंह शनिवार को गुजरात विश्वविद्यालय (जीयू) में आयोजित २४वीं अखिल भारतीय फोरेंसिक विज्ञान कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अपराध से निपटने में डीएनए व फिंगरप्रिंट फोरेंसिक की भी अहम भूमिका है। कई देशों में इसका डाटाबेस है। देश की फोरेंसिक लैब में डीएनए जांच की क्षमता कम है जिसे बढ़ाया जाएगा। फोरेंसिक डीएनए का डाटा बेस भी बनाया जाएगा। इस पर काम शुरू हो गया है।
गृह मंत्री ने कहा कि केन्द्र सरकार अपराध को रोकने के लिए क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रेकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम का बड़ा नेटवर्क स्थापित कर रही है। इस केन्द्रीय नेटवर्क से न सिर्फ पुलिस, बल्कि फोरेंसिक लैब और कोर्ट को भी जोड़ा जा रहा है। यह इंटर ऑपरेटिव क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम व नेटवर्क का प्रोजेक्ट पूरा होने पर देश में अपराधियों को पकडऩा आसान हो जाएगा। डॉन को पकडऩा मुश्किल और नामुमकिन होने की कहावत का उल्लेख करते हुए कहा कि डॉन को पकडऩा अब आसान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि देश की प्रत्येक फोरेसिंक साइंस लैबोरेटरी (एफएसएल) में स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) एक समान करने की जरूरत है, ताकि लैब की फोरेसिंक जांच रिपोर्ट को अदात में दी जाने वाली चुनौती व उसके विरोधाभास को टाला जा सके। फोरेंसिक जांच के लिए नमूनों को लेने की प्रक्रिया को भी पारदर्शी बनाया जाए।
उन्होंने देशभर में फोरेंसिक साइंस विश्वविद्यालयों एवं फोरेसिंक साइंस पाठ्यक्रम चलाने वाले विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी एकरूपता व समानता लाने जरूरत जताई।
हर थाने के पुलिसकर्मियों को फोरेसिंक साइंस की जानकारी हो
राजनाथ ने कहा कि आज समय आ गया है कि देश के हर जिले में फोरेंसिक साइंस पर चर्चा हो। हर थाने के पुलिस कर्मचारियों को फोरेंसिक साइंस व उसकी प्रक्रिया की बेसिक जानकारी हो। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए। विशेषकर अपराध की जांच करने वाले अधिकारियों को इसमें होने वाले अन्वेषणों और इनोवेशनों की भी जानकारी हो। कई बार देखा है कि जांच अधिकारी को फोरेंसिक सबूत, डीएनए प्रोफाइलिंग की जानकारी नहीं होती है, जिससे मौकाए वारदात से सबूत या तो नष्ट हो जाते हैं या गैरउपयोगी हो जाते हैं। इसका फायदा अपराधियों को होता है। उन्होंने कहा कि केस को फुलप्रूफ बनाने के लिए फोरेंसिक साइंस विशेषज्ञ की अहम भूमिका होती है।
मौजूदा फोरेंसिक साइंस देश में १५०-२०० वर्षों के प्रयासों का आधुनिक रूप है।
उन्होंने कहा कि देश में पहली फोरेंसिक लैब अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान स्थापित की गई। लेकिन अंग्रेज फोरेंसिक से ज्यादा बलों (फोर्स) पर विश्वास करते थे। आजादी के बाद की सरकारों ने भी ऐसा ही किया।
उन्होंने कहा कि अपराध को रोकने के लिए कड़े कानून व कड़े प्रावधानों की नहीं बल्कि आरोपियों के जल्द पकड़े जाने और उन्हें जल्द दंडित करने की जरूरत है। जल्द पकड़े जाने और दंडित होने पर आरोपी डरता है। फोरेंसिक साइंस आरोपियों को चिन्हित करने, उन्हें पकडऩे और सजा दिलाने में आज काफी अहम भूमिका निभा रही है। अदालतों में गवाहों का मुकरना शुरू होने के बाद सजा दिलाने में फोरेंसिक सबूत अहम रोल निभा रहे हैं।
इस मौके पर प्रदेश के गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जाडेजा, गृह मंत्रालय के फोरेंसिक साइंस सेवा निदेशालय डीएफएसएस के चीफ फोरेंसिक साइंटिस्ट ए.के.गंजू, गुजरात फॉरेन्सिक विज्ञान विश्वविद्यालय (जीएफएसयू) के महानिदेशक डॉ.जे.एम.व्यास, रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय (आरएसयू) के महानिदेशक विकास सहाय, गुजरात विवि के कुलपति डॉ.हिमांशु पंड्या व देशभर से आए फोरेंसिक साइंस विशेषज्ञ उपस्थित थे। इस अवसर पर फोरेंसिक साइंस में अहम योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित भी किया गया।
देश में बनेगी फोरेंसिक परिषद : गृहमंत्री
गृहमंत्री सिंह ने कहा कि गुजरात विवि के कुलपति डॉ. पंड्या की ओर से दिया गया सीए काउंसिल, मेडिकल काउंसिल की तर्ज पर फोरेंसिक परिषद गठित किए जाने का विचार काफी महत्वपूर्ण है। यह विचार उन्हें पसंद आया है। २४वीं ऑल इंडिया फोरेंसिक साइंस कॉन्फ्रेंस के मौके पर वे इसके गठन की घोषणा करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में आगे बढऩे के लिए कॉन्फ्रेंस में चर्चा हो।